Monday, 3 April 2017

ताजमहल कि सत्य कथा

ⓘ Optimized 1 hour agoView Original http://www.mahashakti.org.in/2009/12/blog-post_19.html?m=1  ताजमहल एक शिव मंदिर - Full and Real Story of Tajmahal    "ताजमहल में शिव का पाँचवा रूप अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजित है" A Complete and True History of Taj Mahal in Hindi आगरा के ताजमहल का सच सम्पूर्ण विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने वाले श्री पी.एन. ओक अपनी पुस्तक "Tajmahal is a Hindu Temple Palace" और "Taj Mahal: The True Story" में 100 से भी अधिक प्रमाण और तर्को का हवाला देकर दावा करते हैं कि ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है। श्री पी.एन. ओक साहब को उस इतिहासकार के रूप मे जाना जाता है जो भारत के विकृत इतिहास को पुर्नोत्‍थान और सही दिशा में ले जाने का काम किया है। मुगलो और अग्रेजो के समय मे जिस प्रकार भारत के इतिहास के साथ जिस प्रकार छेड़छाड की गई और आज वर्तमान तक मे की जा रही है, उसका विरोध और सही प्रस्तुतिकारण करने वाले प्रमुख इतिहासकारो में पुरूषोत्तम नाथ ओक (Historian Purushottam Nath Oak) साहब का नाम लिया जाता है। ओक साहब ने ताजमहल की भूमिका, इतिहास और पृष्‍ठभूमि से लेकर सभी का अध्‍ययन किया और छायाचित्रों छाया चित्रो के द्वारा उसे प्रमाणित करने का सार्थक प्रयास किया। श्री ओक के इन तथ्‍यो पर आज सरकार और प्रमुख विश्वविद्यालय आदि मौन जबकि इस विषय पर शोध किया जाना चाहिये और सही इतिहास से देश और समाज को अवगत कराना चाहिये। किन्‍तु दुःख की बात तो यह है कि आज तक उनकी किसी भी प्रकार से अधिकारिक जाँच नहीं हुई। यदि ताजमहल के शिव मंदिर होने में सच्चाई है तो भारतीयता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। आज भी हम जैसे विद्यार्थियों को झूठे इतिहास की शिक्षा देना स्वयं शिक्षा के लिये अपमान की बात है, क्‍योकि जिस इतिहास से हम सबक सीखने की बात कहते है यदि वह ही गलत हो, इससे बड़ा राष्‍ट्रीय शर्म और क्‍या हो सकता है ? आखिर क्यों ताजमहल की असलियत को देश से छिपाया जा रहा है? इतने मजबूत तथ्यों और तर्कों के बाद भी ताजमहल के सही इतिहास से देश को क्यों वंचित रखा जा रहा है?  प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी विसंगतियों को इंगित करते हैं जो शिव मंदिर के पक्ष में विश्वास का समर्थन करते हैं। प्रो. ओक के अनुसार ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है और आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं, जो आम जनता की पहुँच से दूर हैं। प्रो. ओक. ने यह भी जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं। ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद-बूँद कर पानी टपकता रहता है, यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी भी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता, जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद-बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है, फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या मतलब? इस बात का तोड़ आज तक नहीं खोजा जा सका है।  ताज महल की सच्चाई की कहानी राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं। प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे! पी. एन. ओक. को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि "ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था" प्रो. ओक. अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" द्वारा इस बात में विश्वास रखते हैं कि सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था। ओक कहते हैं कि ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था। अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था।  शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी" ने अपने "बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है, जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि, शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद, बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके 6 माह बाद तारीख़ 15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया गया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए, आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुनः दफनाया गया,लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे ,पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे। इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा जयसिंह को दिए गए थे। शाहजहां की बेगम अर्जुमंद बानो (मुमताज) बुरहानपुर (म0प्र0) में 14वें बच्चे के जन्म के समय मरी। उसे वहीं दफना दिया गया था। फिर आगरा में उसकी कब्र कहां से आ गयी? और एक नहीं, दो कब्रें। एक ऊपर एक नीचे। एक को असली और दूसरी को नकली कहते हैं, जबकि वे दोनों ही नकली हैं। मुस्लिम समाज में कब्र खोदना कुफ्र है, और शाहजहां यह काम कर अपनी बेगम को जहन्नुम में भेजना कैसे पसंद कर सकता था?  इसी प्रकार ताजमहल का मूल नाम तेजोमहालय है, जो भगवान शंकर का मंदिर था। यह मुगलों के चाकर राजा जयसिंह के वीर पूर्वजों ने बनवाया था, पर शाहजहां ने दबाव डालकर जयसिंह से इसे ले लिया। फिर कुरान की आयतें खुदवा कर और नकली कब्रें बनाकर उसे प्रेम का प्रतीक घोषित कर दिया। नकली कब्रें जानबूझ कर वहीं बनाई गयीं, जहां शिवलिंग स्थापित था, ताकि भविष्य में भी उसे हटाकर कभी असलियत सामने न आ सके। ताजमहल में नीचे की ओर अनेक कमरे हैं, जिन्हें खोला नहीं जाता। कहते हैं कि वहां वे सब देव प्रतिमाएं रखी हैं, जिन्हें मंदिर से हटा दिया गया था। कार्बन डेटिंग के आधार पर इसे 1,400 साल पुराना बताया गया है, पर इस सच को सदा छिपाया जाता है।  ताजमहल की सच्चाई, रहस्य और इतिहास की कहानी आगरा को प्राचीनकाल में अंगिरा कहते थे, क्योंकि यह ऋषि अंगिरा की तपोभूमि थी। अं‍गिरा ऋषि भगवान शिव के उपासक थे। बहुत प्राचीन काल से ही आगरा में 5 शिव मंदिर बने थे। यहां के निवासी सदियों से इन 5 शिव मंदिरों में जाकर दर्शन व पूजन करते थे। लेकिन अब कुछ सदियों से बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक केवल 4 ही शिव मंदिर शेष हैं। 5वें शिव मंदिर को सदियों पूर्व कब्र में बदल दिया गया। स्पष्टतः वह 5वां शिव मंदिर आगरा के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही हैं, जो कि तेजोमहालय मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे। तेजोमहालय को नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था, क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था। यह मंदिर विशालकाय महल क्षेत्र में था। इतिहासकार ओक की पुस्तक अनुसार ताजमहल के हिन्दू निर्माण का साक्ष्य देने वाला काले पत्थर पर उत्कीर्ण एक संस्कृत शिलालेख लखनऊ के वास्तु संग्रहालय के ऊपर तीसरी मंजिल में रखा हुआ है। यह सन् 1155 का है। उसमें राजा परमर्दिदेव के मंत्री सलक्षण द्वारा कहा गया है कि 'स्फटिक जैसा शुभ्र इन्दुमौलीश्‍वर (शंकर) का मंदिर बनाया गया। (वह इ‍तना सुंदर था कि) उसमें निवास करने पर शिवजी को कैलाश लौटने की इच्छा ही नहीं रही। वह मंदिर आश्‍विन शुक्ल पंचमी, रविवार को बनकर तैयार हुआ। ताजमहल के उद्यान में काले पत्थरों का एक मंडप था, यह एक ऐतिहासिक उल्लेख है। उसी में वह संस्कृत शिलालेख लगा था। उस शिलालेख को कनिंगहम ने जान-बूझकर वटेश्वर शिलालेख कहा है ताकि इतिहासकारों को भ्रम में डाला जा सके और ताजमहल के हिन्दू निर्माण का रहस्य गुप्त रहे। आगरे से 70 मिल दूर बटेश्वर में वह शिलालेख नहीं पाया गया अत: उसे बटेश्वर शिलालेख कहना अंग्रेजी षड्‍यंत्र है। शाहजहां ने तेजोमहल में जो तोड़फोड़ और हेराफेरी की, उसका एक सूत्र सन् 1874 में प्रकाशित भारतीय पुरातत्व विभाग (आर्किओलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) के वार्षिक वृत्त के चौथे खंड में पृष्ठ 216 से 17 पर अंकित है। उसमें लिखा है कि हाल में आगरे के वास्तु संग्रहालय के आंगन में जो चौखुंटा काले बसस्ट का प्रस्तर स्तंभ खड़ा है वह स्तंभ तथा उसी की जोड़ी का दूसरा स्तंभ उसके शिखर तथा चबूतरे सहित कभी ताजमहल के उद्यान में प्रस्थापित थे। इससे स्पष्ट है कि लखनऊ के वास्तु संग्रहालय में जो शिलालेख है वह भी काले पत्थर का होने से ताजमहल के उद्यान मंडप में प्रदर्शित था। हिन्दू मंदिर प्रायः नदी या समुद्र तट पर बनाए जाते हैं। ताज भी यमुना नदी के तट पर बना है, जो कि शिव मंदिर के लिए एक उपयुक्त स्थान है। शिव मंदिर में एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में दो शिवलिंग स्थापित करने का हिन्दुओं में रिवाज था, जैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ मंदिर में देखा जा सकता है। ताजमहल में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर की मंजिल के कक्ष में है तथा दोनों ही कब्रों को मुमताज का बताया जाता है। जिन संगमरमर के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं उनके रंग में पीलापन है जबकि शेष पत्थर ऊंची गुणवत्ता वाले शुभ्र रंग के हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि कुरान की आयतों वाले पत्थर बाद में लगाए गए हैं। ताज के दक्षिण में एक प्राचीन पशुशाला है। वहां पर तेजोमहालय की पालतू गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गाय कोठा होना एक असंगत बात है। ताजमहल में चारों ओर चार एक समान प्रवेशद्वार हैं, जो कि हिन्दू भवन निर्माण का एक विलक्षण तरीका है जिसे कि चतुर्मुखी भवन कहा जाता है। ताजमहल में ध्वनि को गुंजाने वाला गुम्बद है। हिन्दू मंदिरों के लिए गूंज उत्पन्न करने वाले गुम्बजों का होना अनिवार्य है। बौद्धकाल में इसी तरह के शिव मंदिरों का अधिक निर्माण हुआ था। ताजमहल का गुम्बज कमल की आकृति से अलंकृत है। आज हजारों ऐसे हिन्दू मंदिर हैं, जो कि कमल की आकृति से अलंकृत हैं। ताजमहल के गुम्बज में सैकड़ों लोहे के छल्ले लगे हुए हैं जिस पर बहुत ही कम लोगों का ध्यान जा पाता है। इन छल्लों पर मिट्टी के आलोकित दीये रखे जाते थे जिससे कि संपूर्ण मंदिर आलोकमय हो जाता था। ताजमहल की चारों मीनारें बाद में बनाई गईं। इतिहासकार ओक के अनुसार ताज एक सात मंजिला भवन है। शहजादे औरंगजेब के शाहजहां को लिखे पत्र में भी इस बात का विवरण है। भवन की चार मंजिलें संगमरमर पत्थरों से बनी हैं जिनमें चबूतरा, चबूतरे के ऊपर विशाल वृत्तीय मुख्य कक्ष और तहखाने का कक्ष शामिल है। मध्य में दो मंजिलें और हैं जिनमें 12 से 15 विशाल कक्ष हैं। संगमरमर की इन चार मंजिलों के नीचे लाल पत्थरों से बनी दो और मंजिलें हैं, जो कि पिछवाड़े में नदी तट तक चली जाती हैं। सातवीं मंजिल अवश्य ही नदी तट से लगी भूमि के नीचे होनी चाहिए, क्योंकि सभी प्राचीन हिन्दू भवनों में भूमिगत मंजिल हुआ करती है। नदी तट के भाग में संगमरमर की नींव के ठीक नीचे लाल पत्थरों वाले 22 कमरे हैं जिनके झरोखों को शाहजहां ने चुनवा दिया है। इन कमरों को, जिन्हें कि शाहजहां ने अतिगोपनीय बना दिया है, भारत के पुरातत्व विभाग द्वारा तालों में बंद रखा जाता है। सामान्य दर्शनार्थियों को इनके विषय में अंधेरे में रखा जाता है। इन 22 कमरों की दीवारों तथा भीतरी छतों पर अभी भी प्राचीन हिन्दू चित्रकारी अंकित हैं। इन कमरों से लगा हुआ लगभग 33 फुट लंबा गलियारा है। गलियारे के दोनों सिरों में एक-एक दरवाजे बने हुए हैं। इन दोनों दरवाजों को इस प्रकार से आकर्षक रूप से ईंटों और गारे से चुनवा दिया गया है कि वे दीवार जैसे प्रतीत हों। स्पष्टत: मूल रूप से शाहजहां द्वारा चुनवाए गए इन दरवाजों को कई बार खुलवाया और फिर से चुनवाया गया है। सन् 1934 में दिल्ली के एक निवासी ने चुनवाए हुए दरवाजे के ऊपर पड़ी एक दरार से झांककर देखा था। उसके भीतर एक वृहत कक्ष और वहां के दृश्य को देखकर वह हक्का-बक्का रह गया तथा भयभीत-सा हो गया। वहां बीचोबीच भगवान शिव का चित्र था जिसका सिर कटा हुआ था और उसके चारों ओर बहुत सारी मूर्तियों का जमावड़ा था। ऐसा भी हो सकता है कि वहां पर संस्कृत के शिलालेख भी हों। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ताजमहल हिन्दू चित्र, संस्कृत शिलालेख, धार्मिक लेख, सिक्के तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं जैसे कौन-कौन-से साक्ष्य छुपे हुए हैं, उसकी सातों मंजिलों को खोलकर साफ-सफाई कराने की नितांत आवश्यकता है। फ्रांसीसी यात्री बेर्नियर ने लिखा है कि ताज के निचले रहस्यमय कक्षों में गैर मुस्लिमों को जाने की इजाजत नहीं थी, क्योंकि वहां चौंधिया देने वाली वस्तुएं थीं। यदि वे वस्तुएं शाहजहां ने खुद ही रखवाई होती तो वह जनता के सामने उनका प्रदर्शन गौरव के साथ करता, परंतु वे तो लूटी हुई वस्तुएं थीं और शाहजहां उन्हें अपने खजाने में ले जाना चाहता था इसीलिए वह नहीं चाहता था कि कोई उन्हें देखे। नदी के पिछवाड़े में हिन्दू बस्तियां, बहुत से हिन्दू प्राचीन घाट और प्राचीन हिन्दू शवदाह गृह हैं। यदि शाहजहां ने ताज को बनवाया होता तो इन सबको नष्ट कर दिया गया होता। प्रोफ़ेसर पुरुषोत्तम ओक के अनुसार बादशाहनामा, जो कि शाहजहां के दरबार के लेखा-जोखा की पुस्तक है, में स्वीकारोक्ति है (पृष्ठ 403 भाग 1) कि मुमताज को दफनाने के लिए जयपुर के महाराजा जयसिंह से एक चमकदार, बड़े गुम्बद वाला विशाल भवन (इमारत-ए-आलीशान व गुम्बज) लिया गया, जो कि राजा मानसिंह के भवन के नाम से जाना जाता था। जयपुर के पूर्व महाराजा ने अपनी दैनंदिनी में 18 दिसंबर, 1633 को जारी किए गए शाहजहां के ताज भवन समूह को मांगने के बाबत दो फरमानों (नए क्रमांक आर. 176 और 177) के विषय में लिख रखा है। यह बात जयपुर के उस समय के शासक के लिए घोर लज्जाजनक थी और इसे कभी भी आम नहीं किया गया। ताजमहल के बाहर पुरातत्व विभाग में रखे हुए शिलालेख में वर्णित है कि शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल को दफनाने के लिए एक विशाल इमारत बनवाई जिसे बनाने में सन् 1631 से लेकर 1653 तक 22 वर्ष लगे। यह शिलालेख ऐतिहासिक घपले का नमूना है। प्रोफ़ेसर ओक लिखते हैं कि शहजादा औरंगजेब द्वारा अपने पिता को लिखी गई चिट्ठी को कम से कम तीन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक वृत्तांतों में दर्ज किया गया है जिनके नाम 'आदाब-ए-आलमगिरी', 'यादगारनामा' और 'मुरुक्का-ए-अकबराबादी' (1931 में सैद अहमद, आगरा द्वारा संपादित, पृष्ठ 43, टीका 2) हैं। उस चिट्ठी में सन् 1662 में औरंगजेब ने खुद लिखा है कि मुमताज के सात मंजिला लोकप्रिय दफन स्थान के प्रांगण में स्थित कई इमारतें इतनी पुरानी हो चुकी हैं कि उनमें पानी चू रहा है और गुम्बद के उत्तरी सिरे में दरार पैदा हो गई है। इसी कारण से औरंगजेब ने खुद के खर्च से इमारतों की तुरंत मरम्मत के लिए फरमान जारी किया और बादशाह से सिफारिश की कि बाद में और भी विस्तारपूर्वक मरम्मत कार्य करवाया जाए। यह इस बात का साक्ष्य है कि शाहजहां के समय में ही ताज प्रांगण इतना पुराना हो चुका था कि तुरंत मरम्मत करवाने की जरूरत थी। शाहजहां के दरबारी लेखक मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी ने अपने 'बादशाहनामा' में मुगल शासक बादशाह का संपूर्ण वृत्तांत 1000 से ज्यादा पृष्ठों में लिखा है जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि शाहजहां की बेगम मुमताज-उल-मानी जिसे मृत्यु के बाद बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके 6 माह बाद तारीख 15 मदी-उल-अउवल दिन शुक्रवार को अकबराबाद आगरा लाया गया फिर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) में पुनः दफनाया गया। लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों की इस आलीशान मंजिल से बेहद प्यार करते थे, पर बादशाह के दबाव में वे इसे देने के लिए तैयार हो गए थे। इस बात की पुष्टि के लिए यहां यह बताना अत्यंत आवश्यक है कि जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनों आदेश अभी तक रखे हुए हैं, जो शाहजहां द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा जयसिंह को दिए गए थे। श्री पी.एन. ओक का दावा है कि ताजमहल शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है। इस सम्बंध में उनके द्वारा दिये गये तर्कों का हिंदी रूपांतरण इस प्रकार है। सर्वप्रथम ताजमहल के नाम के सम्‍बन्‍ध में श्री ओक साहब ने कहा कि- शाहज़हां और यहां तक कि औरंगज़ेब के शासनकाल तक में भी कभी भी किसी शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं आया है। ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है। ताजमहल शब्द के अंत में आये 'महल' मुस्लिम शब्द है ही नहीं, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में एक भी ऐसी इमारत नहीं है जिसे कि महल के नाम से पुकारा जाता हो। साधारणतः समझा जाता है कि ताजमहल नाम मुमताज महल, जो कि वहां पर दफनाई गई थी, के कारण पड़ा है। यह बात कम से कम दो कारणों से तर्कसम्मत नहीं है - पहला यह कि शाहजहां के बेगम का नाम मुमताजमहल था ही नहीं, उसका नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था और दूसरा यह कि किसी इमारत का नाम रखने के लिय मुमताज़ नामक औरत के नाम से "मुम" को हटा देने का कुछ मतलब नहीं निकलता। चूँकि महिला का नाम मुमताज़ था जो कि ज़ अक्षर मे समाप्त होता है न कि ज में (अंग्रेजी का Z न कि J), भवन का नाम में भी ताज के स्थान पर ताज़ होना चाहिये था (अर्थात् यदि अंग्रेजी में लिखें तो Taj के स्थान पर Taz होना था जैसा कि उर्दू में ज के लिए J नही Z का उपयोग किया जाता है)। शाहज़हां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख 'ताज-ए-महल' के नाम से किया है जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम तेजोमहालय से मेल खाता है। इसके विरुद्ध शाहज़हां और औरंगज़ेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुये उसके स्थान पर पवित्र मकब़रा शब्द का ही प्रयोग किया है। मकब़रे को कब्रगाह ही समझना चाहिये, न कि महल, इस प्रकार से समझने से यह सत्य अपने आप समझ में आ जायेगा कि हुमायुँ, अकबर, मुमताज़, एतमातुद्दौला और सफ़दरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिंदू महलों या मंदिरों में दफ़नाया गया है। यदि ताज का अर्थ कब्रिस्तान है तो उसके साथ महल शब्द जोड़ने का कोई तुक ही नहीं है। ताजमहल शब्द का प्रयोग मुग़ल दरबारों में कभी किया ही नहीं जाता था, ताजमहल के विषय में किसी प्रकार की मुग़ल व्याख्या ढूंढना ही असंगत है। 'ताज' और 'महल' दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं। श्री ओक साहब ने इसको मंदिर कहे जाने की बातो को तर्कसंगत तरीके से बताया है वह निम्न है- ताजमहल शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द तेजोमहालय शब्द का अपभ्रंश है। तेजोमहालय मंदिर में अग्रेश्वर महादेव प्रतिष्ठित थे। संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ने के पहले जूते उतारने की परंपरा शाहज़हां के समय से भी पहले की थी जब ताज शिव मंदिर था। यदि ताज का निर्माण मक़बरे के रूप में हुआ होता तो जूते उतारने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि किसी मक़बरे में जाने के लिये जूता उतारना अनिवार्य नहीं होता। देखने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे में पुष्प लता आदि से चित्रित पच्चीकारी की गई है। इससे साफ जाहिर होता है कि मुमताज़ के मक़बरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है। संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिंदू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है। ताजमहल के रख-रखाव तथा मरम्मत करने वाले ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने कि प्राचीन पवित्र शिव लिंग तथा अन्य मूर्तियों को चौड़ी दीवारों के बीच दबा हुआ और संगमरमर वाले तहखाने के नीचे की मंजिलों के लाल पत्थरों वाले गुप्त कक्षों, जिन्हें कि बंद (seal) कर दिया गया है, के भीतर देखा है। भारतवर्ष में 12 ज्योतिर्लिंग है। ऐसा प्रतीत होता है कि तेजोमहालय उर्फ ताजमहल उनमें से एक है जिसे कि नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था। जब से शाहज़हां ने उस पर कब्ज़ा किया, उसकी पवित्रता और हिंदुत्व समाप्त हो गई। वास्तुकला की विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में 'तेज-लिंग' का वर्णन आता है। ताजमहल में 'तेज-लिंग' प्रतिष्ठित था इसीलिये उसका नाम तेजोमहालय पड़ा था। आगरा नगर, जहां पर ताजमहल स्थित है, एक प्राचीन शिव पूजा केन्द्र है। यहां के धर्मावलम्बी निवासियों की सदियों से दिन में पाँच शिव मंदिरों में जाकर दर्शन व पूजन करने की परंपरा रही है विशेषकर श्रावन के महीने में। पिछले कुछ सदियों से यहां के भक्तजनों को बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक केवल चार ही शिव मंदिरों में दर्शन-पूजन उपलब्ध हो पा रही है। वे अपने पाँचवे शिव मंदिर को खो चुके हैं जहां जाकर उनके पूर्वज पूजा पाठ किया करते थे। स्पष्टतः वह पाँचवाँ शिवमंदिर आगरा के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही है जो कि तेजोमहालय मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे। आगरा मुख्यतः जाटों की नगरी है। जाट लोग भगवान शिव को तेजाजी के नाम से जानते हैं। The Illustrated Weekly of India के जाट विशेषांक (28 जून, 1971) के अनुसार जाट लोगों के तेजा मंदिर हुआ करते थे। अनेक शिवलिंगों में एक तेजलिंग भी होता है जिसके जाट लोग उपासक थे। इस वर्णन से भी ऐसा प्रतीत होता है कि ताजमहल भगवान तेजाजी का निवासस्थल तेजोमहालय था। ओक साहब ने भारतीय प्रामाणिक दस्तावेजो द्वारा इसे मकबरा मानने से इंकार कर दिया है बादशाहनामा, जो कि शाहज़हां के दरबार के लेखाजोखा की पुस्तक है, में स्वीकारोक्ति है (पृष्ठ 403 भाग-1) कि मुमताज को दफ़नाने के लिये जयपुर के महाराजा जयसिंह से एक चमकदार, बड़े गुम्बद वाला विशाल भवन (इमारत-ए-आलीशान व गुम्ब़ज) लिया गया जो कि राजा मानसिंह के भवन के नाम से जाना जाता था। ताजमहल के बाहर पुरातत्व विभाग में रखे हुये शिलालेख में वर्णित है कि शाहज़हां ने अपनी बेग़म मुमताज़ महल को दफ़नाने के लिये एक विशाल इमारत बनवाया जिसे बनाने में सन् 1631 से लेकर 1653 तक 22 वर्ष लगे। यह शिलालेख ऐतिहासिक घपले का नमूना है। पहली बात तो यह है कि शिलालेख उचित व अधिकारिक स्थान पर नहीं है। दूसरी यह कि महिला का नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था न कि मुमताज़ महल। तीसरी, इमारत के 22 वर्ष में बनने की बात सारे मुस्लिम वर्णनों को ताक में रख कर टॉवेर्नियर नामक एक फ्रांसीसी अभ्यागत के अविश्वसनीय रुक्के से येन केन प्रकारेण ले लिया गया है जो कि एक बेतुकी बात है। शाहजादा औरंगज़ेब के द्वारा अपने पिता को लिखी गई चिट्ठी को कम से कम तीन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक वृतान्तों में दर्ज किया गया है, जिनके नाम 'आदाब-ए-आलमगिरी', 'यादगारनामा' और 'मुरुक्का-ए-अकब़राबादी' (1931 में सैद अहमद, आगरा द्वारा संपादित, पृष्ठ 43, टीका 2) हैं। उस चिट्ठी में सन् 1662 में औरंगज़ेब ने खुद लिखा है कि मुमताज़ के सातमंजिला लोकप्रिय दफ़न स्थान के प्रांगण में स्थित कई इमारतें इतनी पुरानी हो चुकी हैं कि उनमें पानी चू रहा है और गुम्बद के उत्तरी सिरे में दरार पैदा हो गई है। इसी कारण से औरंगज़ेब ने खुद के खर्च से इमारतों की तुरंत मरम्मत के लिये फरमान जारी किया और बादशाह से सिफ़ारिश की कि बाद में और भी विस्तारपूर्वक मरम्मत कार्य करवाया जाये। यह इस बात का साक्ष्य है कि शाहज़हाँ के समय में ही ताज प्रांगण इतना पुराना हो चुका था कि तुरंत मरम्मत करवाने की जरूरत थी। जयपुर के भूतपूर्व महाराजा ने अपनी दैनंदिनी में 18 दिसंबर, 1633 को जारी किये गये शाहज़हां के ताज भवन समूह को मांगने के बाबत दो फ़रमानों (नये क्रमांक आर. 176 और 177) के विषय में लिख रखा है। यह बात जयपुर के उस समय के शासक के लिये घोर लज्जाजनक थी और इसे कभी भी आम नहीं किया गया। राजस्थान प्रदेश के बीकानेर स्थित लेखागार में शाहज़हां के द्वारा (मुमताज़ के मकबरे तथा कुरान की आयतें खुदवाने के लिये) मरकाना के खदानों से संगमरमर पत्थर और उन पत्थरों को तराशने वाले शिल्पी भिजवाने बाबत जयपुर के शासक जयसिंह को जारी किये गये तीन फ़रमान संरक्षित हैं। स्पष्टतः शाहज़हां के ताजमहल पर जबरदस्ती कब्ज़ा कर लेने के कारण जयसिंह इतने कुपित थे कि उन्होंने शाहज़हां के फरमान को नकारते हुये संगमरमर पत्थर तथा (मुमताज़ के मकब़रे के ढोंग पर कुरान की आयतें खोदने का अपवित्र काम करने के लिये) शिल्पी देने के लिये इंकार कर दिया। जयसिंह ने शाहज़हां की मांगों को अपमानजनक और अत्याचारयुक्त समझा। और इसीलिये पत्थर देने के लिये मना कर दिया साथ ही शिल्पियों को सुरक्षित स्थानों में छुपा दिया। शाहज़हां ने पत्थर और शिल्पियों की मांग वाले ये तीनों फ़रमान मुमताज़ की मौत के बाद के दो वर्षों में जारी किया था। यदि सचमुच में शाहज़हां ने ताजमहल को 22 साल की अवधि में बनवाया होता तो पत्थरों और शिल्पियों की आवश्यकता मुमताज़ की मृत्यु के 15-20 वर्ष बाद ही पड़ी होती। किसी भी ऐतिहासिक वृतान्त में ताजमहल, मुमताज़ तथा दफ़न का कहीं भी जिक्र नहीं है। न ही पत्थरों के परिमाण और दाम का कहीं जिक्र है। इससे सिद्ध होता है कि पहले से ही निर्मित भवन को कपट रूप देने के लिये केवल थोड़े से पत्थरों की जरूरत थी। जयसिंह के सहयोग के अभाव में शाहज़हां संगमरमर पत्थर वाले विशाल ताजमहल बनवाने की उम्मीद ही नहीं कर सकता था। विदेशी और यूरोपीय अभ्यागतों के अभिलेख द्वारा मत स्‍पष्‍ट करना टॉवेर्नियर, जो कि एक फ्रांसीसी जौहरी था, ने अपने यात्रा संस्मरण में उल्लेख किया है कि शाहज़हां ने जानबूझ कर मुमताज़ को 'ताज-ए-मकान', जहाँ पर विदेशी लोग आया करते थे जैसे कि आज भी आते हैं, के पास दफ़नाया था ताकि पूरे संसार में उसकी प्रशंसा हो। वह आगे और भी लिखता है कि केवल चबूतरा बनाने में पूरी इमारत बनाने से अधिक खर्च हुआ था। शाहज़हां ने केवल लूटे गये तेजोमहालय के केवल दो मंजिलों में स्थित शिवलिंगों तथा अन्य देवी देवता की मूर्तियों के तोड़फोड़ करने, उस स्थान को कब्र का रूप देने और वहाँ के महराबों तथा दीवारों पर कुरान की आयतें खुदवाने के लिये ही खर्च किया था। मंदिर को अपवित्र करने, मूर्तियों को तोड़फोड़ कर छुपाने और मकब़रे का कपट रूप देने में ही उसे 22 वर्ष लगे थे। एक अंग्रेज अभ्यागत पीटर मुंडी ने सन् 1632 में (अर्थात् मुमताज की मौत को जब केवल एक ही साल हुआ था) आगरा तथा उसके आसपास के विशेष ध्यान देने वाले स्थानों के विषय में लिखा है जिसमें के ताज-ए-महल के गुम्बद, वाटिकाओं तथा बाजारों का जिक्र आया है। इस तरह से वे ताजमहल के स्मरणीय स्थान होने की पुष्टि करते हैं। डी लॉएट नामक डच अफसर ने सूचीबद्ध किया है कि मानसिंह का भवन, जो कि आगरा से एक मील की दूरी पर स्थित है, शाहज़हां के समय से भी पहले का एक उत्कृष्ट भवन है। शाहज़हां के दरबार का लेखाजोखा रखने वाली पुस्तक, बादशाहनामा में किस मुमताज़ को उसी मानसिंह के भवन में दफ़नाना दर्ज है। बेर्नियर नामक एक समकालीन फ्रांसीसी अभ्यागत ने टिप्पणी की है कि गैर मुस्लिम लोगों का (जब मानसिंह के भवन को शाहज़हां ने हथिया लिया था उस समय) चकाचौंध करने वाली प्रकाश वाले तहखानों के भीतर प्रवेश वर्जित था। उन्होंने चांदी के दरवाजों, सोने के खंभों, रत्नजटित जालियों और शिवलिंग के ऊपर लटकने वाली मोती के लड़ियों को स्पष्टतः संदर्भित किया है। जॉन अल्बर्ट मान्डेल्सो ने (अपनी पुस्तक `Voyages and Travels to West-Indies' जो कि John Starkey and John Basset, London के द्वारा प्रकाशित की गई है) में सन् 1638 में (मुमताज़ के मौत के केवल 7 साल बाद) आगरा के जन-जीवन का विस्तृत वर्णन किया है परंतु उसमें ताजमहल के निर्माण के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है जबकि सामान्यतः दृढ़तापूर्वक यह कहा या माना जाता है कि सन् 1631 से 1653 तक ताज का निर्माण होता रहा है।  ताज के गुम्मद पर स्थापित कलश किसके ऊपर नारियल की आकृति बनी है  संस्कृत शिलालेख द्वारा ताज के मूलतः शिव मंदिर होने का समर्थन एक संस्कृत शिलालेख भी ताज के मूलतः शिव मंदिर होने का समर्थन करता है। इस शिलालेख में, जिसे कि गलती से बटेश्वर शिलालेख कहा जाता है (वर्तमान में यह शिलालेख लखनऊ अजायबघर के सबसे ऊपर मंजिल स्थित कक्ष में संरक्षित है) में संदर्भित है, "एक विशाल शुभ्र शिव मंदिर भगवान शिव को ऐसा मोहित किया कि उन्होंने वहाँ आने के बाद फिर कभी अपने मूल निवास स्थान कैलाश वापस न जाने का निश्चय कर लिया।" शाहज़हां के आदेशानुसार सन् 1155 के इस शिलालेख को ताजमहल के वाटिका से उखाड़ दिया गया। इस शिलालेख को 'बटेश्वर शिलालेख' नाम देकर इतिहासज्ञों और पुरातत्वविज्ञों ने बहुत बड़ी भूल की है क्योंकि क्योंकि कहीं भी कोई ऐसा अभिलेख नहीं है कि यह बटेश्वर में पाया गया था। वास्तविकता तो यह है कि इस शिलालेख का नाम 'तेजोमहालय शिलालेख' होना चाहिये क्योंकि यह ताज के वाटिका में जड़ा हुआ था और शाहज़हां के आदेश से इसे निकाल कर फेंक दिया गया था। शाहज़हां के कपट का एक सूत्र Archealogiical Survey of India Reports (1874 में प्रकाशित) के पृष्ठ 216-217, खंड 4 में मिलता है जिसमें लिखा है, great square black balistic pillar which, with the base and capital of another pillar....now in the grounds of Agra,...it is well known, once stood in the garden of Tajmahal".  थॉमस ट्विनिंग की अनुपस्थित गजप्रतिमा के सम्‍बन्‍ध में कथन ताज के निर्माण के अनेक वर्षों बाद शाहज़हां ने इसके संस्कृत शिलालेखों व देवी-देवताओं की प्रतिमाओं तथा दो हाथियों की दो विशाल प्रस्तर प्रतिमाओं के साथ बुरी तरह तोड़फोड़ करके वहाँ कुरान की आयतों को लिखवा कर ताज को विकृत कर दिया, हाथियों की इन दो प्रतिमाओं के सूंड आपस में स्वागतद्वार के रूप में जुड़े हुये थे, जहाँ पर दर्शक आजकल प्रवेश की टिकट प्राप्त करते हैं वहीं ये प्रतिमाएँ स्थित थीं। थॉमस ट्विनिंग नामक एक अंग्रेज (अपनी पुस्तक "Travels in India A Hundred Years ago" के पृष्ठ 191 में) लिखता है, "सन् 1794 के नवम्बर माह में मैं ताज-ए-महल और उससे लगे हुये अन्य भवनों को घेरने वाली ऊँची दीवार के पास पहुँचा। वहाँ से मैंने पालकी ली और..... बीचोबीच बनी हुई एक सुंदर दरवाजे जिसे कि गजद्वार ('COURT OF ELEPHANTS') कहा जाता था की ओर जाने वाली छोटे कदमों वाली सीढ़ियों पर चढ़ा।" कुरान की आयतों के पैबन्द ताजमहल में कुरान की 14 आयतों को काले अक्षरों में अस्पष्ट रूप में खुदवाया गया है किंतु इस इस्लाम के इस अधिलेखन में ताज पर शाहज़हां के मालिकाना ह़क होने के बाबत दूर दूर तक लेशमात्र भी कोई संकेत नहीं है। यदि शाहज़हां ही ताज का निर्माता होता तो कुरान की आयतों के आरंभ में ही उसके निर्माण के विषय में अवश्य ही जानकारी दिया होता। शाहज़हां ने शुभ्र ताज के निर्माण के कई वर्षों बाद उस पर काले अक्षर बनवाकर केवल उसे विकृत ही किया है ऐसा उन अक्षरों को खोदने वाले अमानत ख़ान शिराज़ी ने खुद ही उसी इमारत के एक शिलालेख में लिखा है। कुरान के उन आयतों के अक्षरों को ध्यान से देखने से पता चलता है कि उन्हें एक प्राचीन शिव मंदिर के पत्थरों के टुकड़ों से बनाया गया है। वैज्ञानिक पद्धति कार्बन 14 द्वारा जाँच ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े के एक अमेरिकन प्रयोगशाला में किये गये कार्बन 14 जाँच से पता चला है कि लकड़ी का वो टुकड़ा शाहज़हां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों को 11वी सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों के द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है और फिर से बंद करने के लिये दूसरे दरवाजे भी लगाये गये हैं, ताज और भी पुराना हो सकता है। असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात् शाहज़हां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था। बनावट तथा वास्तुशास्त्रीय तथ्य द्वारा जॉच ई.बी. हॉवेल, श्रीमती केनोयर और सर डब्लू.डब्लू. हंटर जैसे पश्चिम के जाने माने वास्तुशास्त्री, जिन्हें कि अपने विषय पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है, ने ताजमहल के अभिलेखों का अध्ययन करके यह राय दी है कि ताजमहल हिंदू मंदिरों जैसा भवन है। हॉवेल ने तर्क दिया है कि जावा देश के चांदी सेवा मंदिर का ground plan ताज के समान है। चार छोटे छोटे सजावटी गुम्बदों के मध्य एक बड़ा मुख्य गुम्बद होना हिंदू मंदिरों की सार्वभौमिक विशेषता है। चार कोणों में चार स्तम्भ बनाना हिंदू विशेषता रही है। इन चार स्तम्भों से दिन में चौकसी का कार्य होता था और रात्रि में प्रकाश स्तम्भ का कार्य लिया जाता था। ये स्तम्भ भवन के पवित्र अधिसीमाओं का निर्धारण का भी करती थीं। हिंदू विवाह वेदी और भगवान सत्यनारायण के पूजा वेदी में भी चारों कोणों में इसी प्रकार के चार खम्भे बनाये जाते हैं। ताजमहल की अष्टकोणीय संरचना विशेष हिंदू अभिप्राय की अभिव्यक्ति है क्योंकि केवल हिंदुओं में ही आठ दिशाओं के विशेष नाम होते हैं और उनके लिये खगोलीय रक्षकों का निर्धारण किया जाता है। स्तम्भों के नींव तथा बुर्ज क्रमशः धरती और आकाश के प्रतीक होते हैं। हिंदू दुर्ग, नगर, भवन या तो अष्टकोणीय बनाये जाते हैं या फिर उनमें किसी न किसी प्रकार के अष्टकोणीय लक्षण बनाये जाते हैं तथा उनमें धरती और आकाश के प्रतीक स्तम्भ बनाये जाते हैं, इस प्रकार से आठों दिशाओं, धरती और आकाश सभी की अभिव्यक्ति हो जाती है जहाँ पर कि हिंदू विश्वास के अनुसार ईश्वर की सत्ता है। ताजमहल के गुम्बद के बुर्ज पर एक त्रिशूल लगा हुआ है। इस त्रिशूल का का प्रतिरूप ताजमहल के पूर्व दिशा में लाल पत्थरों से बने प्रांगण में नक्काशा गया है। त्रिशूल के मध्य वाली डंडी एक कलश को प्रदर्शित करता है जिस पर आम की दो पत्तियाँ और एक नारियल रखा हुआ है। यह हिंदुओं का एक पवित्र रूपांकन है। इसी प्रकार के बुर्ज हिमालय में स्थित हिंदू तथा बौद्ध मंदिरों में भी देखे गये हैं। ताजमहल के चारों दशाओं में बहुमूल्य व उत्कृष्ट संगमरमर से बने दरवाजों के शीर्ष पर भी लाल कमल की पृष्ठभूमि वाले त्रिशूल बने हुये हैं। सदियों से लोग बड़े प्यार के साथ परंतु गलती से इन त्रिशूलों को इस्लाम का प्रतीक चांद-तारा मानते आ रहे हैं और यह भी समझा जाता है कि अंग्रेज शासकों ने इसे विद्युत चालित करके इसमें चमक पैदा कर दिया था। जबकि इस लोकप्रिय मानना के विरुद्ध यह हिंदू धातुविद्या का चमत्कार है क्योंकि यह जंगरहित मिश्रधातु का बना है और प्रकाश विक्षेपक भी है। त्रिशूल के प्रतिरूप का पूर्व दिशा में होना भी अर्थसूचक है क्योकि हिंदुओं में पूर्व दिशा को, उसी दिशा से सूर्योदय होने के कारण, विशेष महत्व दिया गया है. गुम्बद के बुर्ज अर्थात् (त्रिशूल) पर ताजमहल के अधिग्रहण के बाद 'अल्लाह' शब्द लिख दिया गया है जबकि लाल पत्थर वाले पूर्वी प्रांगण में बने प्रतिरूप में 'अल्लाह' शब्द कहीं भी नहीं है। अन्‍य असंगतियाँ शुभ्र ताज के पूर्व तथा पश्चिम में बने दोनों भवनों के ढांचे, माप और आकृति में एक समान हैं और आज तक इस्लाम की परंपरानुसार पूर्वी भवन को सामुदायिक कक्ष (community hall) बताया जाता है जबकि पश्चिमी भवन पर मस्ज़िद होने का दावा किया जाता है। दो अलग-अलग उद्देश्य वाले भवन एक समान कैसे हो सकते हैं? इससे सिद्ध होता है कि ताज पर शाहज़हां के आधिपत्य हो जाने के बाद पश्चिमी भवन को मस्ज़िद के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। आश्चर्य की बात है कि बिना मीनार के भवन को मस्ज़िद बताया जाने लगा। वास्तव में ये दोनों भवन तेजोमहालय के स्वागत भवन थे। उसी किनारे में कुछ गज की दूरी पर नक्कारख़ाना है जो कि इस्लाम के लिये एक बहुत बड़ी असंगति है (क्योंकि शोरगुल वाला स्थान होने के कारण नक्कारख़ाने के पास मस्ज़िद नहीं बनाया जाता)। इससे इंगित होता है कि पश्चिमी भवन मूलतः मस्ज़िद नहीं था। इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों में सुबह शाम आरती में विजयघंट, घंटियों, नगाड़ों आदि का मधुर नाद अनिवार्य होने के कारण इन वस्तुओं के रखने का स्थान होना आवश्यक है। ताजमहल में मुमताज़ महल के नकली कब्र वाले कमरे की दीवालों पर बनी पच्चीकारी में फूल-पत्ती, शंख, घोंघा तथा हिंदू अक्षर ॐ चित्रित है। कमरे में बनी संगमरमर की अष्टकोणीय जाली के ऊपरी कठघरे में गुलाबी रंग के कमल फूलों की खुदाई की गई है। कमल, शंख और ॐ के हिंदू देवी-देवताओं के साथ संयुक्त होने के कारण उनको हिंदू मंदिरों में मूलभाव के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। जहाँ पर आज मुमताज़ का कब्र बना हुआ है वहाँ पहले तेज लिंग हुआ करता था जो कि भगवान शिव का पवित्र प्रतीक है। इसके चारों ओर परिक्रमा करने के लिये पाँच गलियारे हैं। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली के चारों ओर घूम कर या कमरे से लगे विभिन्न विशाल कक्षों में घूम कर और बाहरी चबूतरे में भी घूम कर परिक्रमा किया जा सकता है। हिंदू रिवाजों के अनुसार परिक्रमा गलियारों में देवता के दर्शन हेतु झरोखे बनाये जाते हैं। इसी प्रकार की व्यवस्था इन गलियारों में भी है। ताज के इस पवित्र स्थान में चांदी के दरवाजे और सोने के कठघरे थे जैसा कि हिंदू मंदिरों में होता है। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली में मोती और रत्नों की लड़ियाँ भी लटकती थीं। ये इन ही वस्तुओं की लालच थी जिसने शाहज़हां को अपने असहाय मातहत राजा जयसिंह से ताज को लूट लेने के लिये प्रेरित किया था। पीटर मुंडी, जो कि एक अंग्रेज था, ने सन् में, मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही चांदी के दरवाजे, सोने के कठघरे तथा मोती और रत्नों की लड़ियों को देखने का जिक्र किया है। यदि ताज का निर्माणकाल 22 वर्षों का होता तो पीटर मुंडी मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही इन बहुमूल्य वस्तुओं को कदापि न देख पाया होता। ऐसी बहुमूल्य सजावट के सामान भवन के निर्माण के बाद और उसके उपयोग में आने के पूर्व ही लगाये जाते हैं। ये इस बात का इशारा है कि मुमताज़ का कब्र बहुमूल्य सजावट वाले शिव लिंग वाले स्थान पर कपट रूप से बनाया गया। मुमताज़ के कब्र वाले कक्ष फर्श के संगमरमर के पत्थरों में छोटे छोटे रिक्त स्थान देखे जा सकते हैं। ये स्थान चुगली करते हैं कि बहुमूल्य सजावट के सामान के विलोप हो जाने के कारण वे रिक्त हो गये। मुमताज़ की कब्र के ऊपर एक जंजीर लटकती है जिसमें अब एक कंदील लटका दिया है। ताज को शाहज़हां के द्वारा हथिया लेने के पहले वहाँ एक शिव लिंग पर बूंद बूंद पानी टपकाने वाला घड़ा लटका करता था। ताज भवन में ऐसी व्यवस्था की गई थी कि हिंदू परंपरा के अनुसार शरदपूर्णिमा की रात्रि में अपने आप शिव लिंग पर जल की बूंद टपके। इस पानी के टपकने को इस्लाम धारणा का रूप दे कर शाहज़हां के प्रेमाश्रु बताया जाने लगा।  ताजमहल में खजाने वाला कुआँ तथाकथित मस्ज़िद और नक्कारखाने के बीच एक अष्टकोणीय कुआँ है जिसमें पानी के तल तक सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। यह हिंदू मंदिरों का परंपरागत खजाने वाला कुआँ है। खजाने के संदूक नीचे की मंजिलों में रखे जाते थे जबकि खजाने के कर्मचारियों के कार्यालय ऊपरी मंजिलों में हुआ करता था। सीढ़ियों के वृतीय संरचना के कारण घुसपैठिये या आक्रमणकारी न तो आसानी के साथ खजाने तक पहुँच सकते थे और न ही एक बार अंदर आने के बाद आसानी के साथ भाग सकते थे, और वे पहचान लिये जाते थे। यदि कभी घेरा डाले हुये शक्तिशाली शत्रु के सामने समर्पण की स्थिति आ भी जाती थी तो खजाने के संदूकों को पानी में धकेल दिया जाता था जिससे कि वह पुनर्विजय तक सुरक्षित रूप से छुपा रहे। एक मकब़रे में इतना परिश्रम करके बहुमंजिला कुआँ बनाना बेमानी है। इतना विशाल दीर्घाकार कुआँ किसी कब्र के लिये अनावश्यक भी है। मुमताज के दफ़न की तारीख अविदित होना यदि शाहज़हां ने सचमुच ही ताजमहल जैसा आश्चर्यजनक मकब़रा होता तो उसके तामझाम का विवरण और मुमताज़ के दफ़न की तारीख इतिहास में अवश्य ही दर्ज हुई होती। परंतु दफ़न की तारीख कभी भी दर्ज नहीं की गई। इतिहास में इस तरह का ब्यौरा न होना ही ताजमहल की झूठी कहानी का पोल खोल देती है। यहाँ तक कि मुमताज़ की मृत्यु किस वर्ष हुई यह भी अज्ञात है। विभिन्न लोगों ने सन् 1629,1630, 1631 या 1632 में मुमताज़ की मौत होने का अनुमान लगाया है। यदि मुमताज़ का इतना उत्कृष्ट दफ़न हुआ होता, जितना कि दावा किया जाता है, तो उसके मौत की तारीख अनुमान का विषय कदापि न होता। 5000 औरतों वाली हरम में किस औरत की मौत कब हुई इसका हिसाब रखना एक कठिन कार्य है। स्पष्टतः मुमताज़ की मौत की तारीख़ महत्वहीन थी इसीलिये उस पर ध्यान नहीं दिया गया। फिर उसके दफ़न के लिये ताज किसने बनवाया? आधारहीन प्रेमकथाएँ शाहज़हां और मुमताज़ के प्रेम की कहानियाँ मूर्खतापूर्ण तथा कपटजाल हैं। न तो इन कहानियों का कोई ऐतिहासिक आधार है न ही उनके कल्पित प्रेम प्रसंग पर कोई पुस्तक ही लिखी गई है। ताज के शाहज़हां के द्वारा अधिग्रहण के बाद उसके आधिपत्य दर्शाने के लिये ही इन कहानियों को गढ़ लिया गया। कीमत शाहज़हां के शाही और दरबारी दस्तावेज़ों में ताज की कीमत का कहीं उल्लेख नहीं है क्योंकि शाहज़हां ने कभी ताजमहल को बनवाया ही नहीं। इसी कारण से नादान लेखकों के द्वारा ताज की कीमत 40 लाख से 9 करोड़ 17 लाख तक होने का काल्पनिक अनुमान लगाया जाता है।  निर्माणकाल ताज का निर्माणकाल 10 से 22 वर्ष तक के होने का अनुमान लगाया जाता है। यदि शाहज़हां ने ताजमहल को बनवाया होता तो उसके निर्माणकाल के विषय में अनुमान लगाने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि उसकी प्रविष्टि शाही दस्तावेज़ों में अवश्य ही की गई होती।  भवननिर्माणशास्त्री ताज भवन के भवननिर्माणशास्त्री (designer, architect) के विषय में भी अनेक नाम लिये जाते हैं जैसे कि ईसा इफेंडी जो कि एक तुर्क था, अहमद़ मेंहदी या एक फ्रांसीसी, आस्टीन डी बोरडीक्स या गेरोनिमो वेरेनियो जो कि एक इटालियन था, या शाहज़हां स्वयं। नदारद दस्तावेज़ ऐसा समझा जाता है कि शाहज़हां के काल में ताजमहल को बनाने के लिये 20 हजार लोगों ने 22 साल तक काम किया। यदि यह सच है तो ताजमहल का नक्शा (design drawings), मजदूरों की हाजिरी रजिस्टर (labour muster rolls), दैनिक खर्च (daily expenditure sheets), भवन निर्माण सामग्रियों के खरीदी के बिल और रसीद (bills and receipts of material ordered) आदि दस्तावेज़ शाही अभिलेखागार में उपलब्ध होते। वहाँ पर इस प्रकार के कागज का एक टुकड़ा भी नहीं है। अतः ताजमहल को शाहज़हाँ ने बनवाया और उस पर उसका व्यक्तिगत तथा सांप्रदायिक अधिकार था जैसे ढोंग को समूचे संसार को मानने के लिये मजबूर करने की जिम्मेदारी चापलूस दरबारी, भयंकर भूल करने वाले इतिहासकार, अंधे भवननिर्माणशस्त्री, कल्पित कथा लेखक, मूर्ख कवि, लापरवाह पर्यटन अधिकारी और भटके हुये पथप्रदर्शकों (guides) पर है। शाहज़हां के समय में ताज के वाटिकाओं के विषय में किये गये वर्णनों में केतकी, जै, जूही, चम्पा, मौलश्री, हारश्रिंगार और बेल का जिक्र आता है। ये वे ही पौधे हैं जिनके फूलों या पत्तियों का उपयोग हिंदू देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना में होता है। भगवान शिव की पूजा में बेल पत्तियों का विशेष प्रयोग होता है। किसी कब्रगाह में केवल छायादार वृक्ष लगाये जाते हैं क्योंकि श्मशान के पेड़ पौधों के फूल और फल का प्रयोग को वीभत्स मानते हुये मानव अंतरात्मा स्वीकार नहीं करती। ताज के वाटिकाओं में बेल तथा अन्य फूलों के पौधों की उपस्थिति सिद्ध करती है कि शाहज़हां के हथियाने के पहले ताज एक शिव मंदिर हुआ करता था। हिंदू मंदिर प्रायः नदी या समुद्र तट पर बनाये जाते हैं। ताज भी यमुना नदी के तट पर बना है जो कि शिव मंदिर के लिये एक उपयुक्त स्थान है। मोहम्मद पैगम्बर ने निर्देश दिये हैं कि कब्रगाह में केवल एक कब्र होना चाहिये और उसे कम से कम एक पत्थर से चिन्हित करना चाहिये। ताजमहल में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर के मंज़िल के कक्ष में है तथा दोनों ही कब्रों को मुमताज़ का बताया जाता है, यह मोहम्मद पैगम्बर के निर्देश के निन्दनीय अवहेलना है। वास्तव में शाहज़हां को इन दोनों स्थानों के शिवलिंगों को दबाने के लिये दो कब्र बनवाने पड़े थे। शिव मंदिर में, एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में, दो शिव लिंग स्थापित करने का हिंदुओं में रिवाज था जैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ मंदिर, जो कि अहिल्याबाई के द्वारा बनवाये गये हैं, में देखा जा सकता है। ताजमहल में चारों ओर चार एक समान प्रवेशद्वार हैं जो कि हिंदू भवन निर्माण का एक विलक्षण तरीका है जिसे कि चतुर्मुखी भवन कहा जाता है।  हिंदू गुम्बज के सम्‍बन्‍ध मे तर्क ताजमहल में ध्वनि को गुंजाने वाला गुम्बद है। ऐसा गुम्बज किसी कब्र के लिये होना एक विसंगति है क्योंकि कब्रगाह एक शांतिपूर्ण स्थान होता है। इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों के लिये गूंज उत्पन्न करने वाले गुम्बजों का होना अनिवार्य है क्योंकि वे देवी-देवता आरती के समय बजने वाले घंटियों, नगाड़ों आदि के ध्वनि के उल्लास और मधुरता को कई गुणा अधिक कर देते हैं। ताजमहल का गुम्बज कमल की आकृति से अलंकृत है। इस्लाम के गुम्बज अनालंकृत होते हैं, दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित पाकिस्तानी दूतावास और पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के गुम्बज उनके उदाहरण हैं। ताजमहल दक्षिणमुखी भवन है। यदि ताज का सम्बंध इस्लाम से होता तो उसका मुख पश्चिम की ओर होता। कब्र दफनस्थल होता है न कि भवन महल को कब्र का रूप देने की गलती के परिणामस्वरूप एक व्यापक भ्रामक स्थिति उत्पन्न हुई है। इस्लाम के आक्रमण स्वरूप, जिस किसी देश में वे गये वहाँ के, विजित भवनों में लाश दफन करके उन्हें कब्र का रूप दे दिया गया। अतः दिमाग से इस भ्रम को निकाल देना चाहिये कि वे विजित भवन कब्र के ऊपर बनाये गये हैं जैसे कि लाश दफ़न करने के बाद मिट्टी का टीला बना दिया जाता है। ताजमहल का प्रकरण भी इसी सच्चाई का उदाहरण है। (भले ही केवल तर्क करने के लिये) इस बात को स्वीकारना ही होगा कि ताजमहल के पहले से बने ताज के भीतर मुमताज़ की लाश दफ़नाई गई न कि लाश दफ़नाने के बाद उसके ऊपर ताज का निर्माण किया गया। ताज एक सातमंजिला भवन है। शाहज़ादा औरंगज़ेब के शाहज़हां को लिखे पत्र में भी इस बात का विवरण है। भवन के चार मंजिल संगमरमर पत्थरों से बने हैं जिनमें चबूतरा, चबूतरे के ऊपर विशाल वृतीय मुख्य कक्ष और तहखाने का कक्ष शामिल है। मध्य में दो मंजिलें और हैं जिनमें 12 से 15 विशाल कक्ष हैं। संगमरमर के इन चार मंजिलों के नीचे लाल पत्थरों से बने दो और मंजिलें हैं जो कि पिछवाड़े में नदी तट तक चली जाती हैं। सातवीं मंजिल अवश्य ही नदी तट से लगी भूमि के नीचे होनी चाहिये क्योंकि सभी प्राचीन हिंदू भवनों में भूमिगत मंजिल हुआ करती है। नदी तट से भाग में संगमरमर के नींव के ठीक नीचे लाल पत्थरों वाले 22 कमरे हैं जिनके झरोखों को शाहज़हां ने चुनवा दिया है। इन कमरों को जिन्हें कि शाहज़हां ने अतिगोपनीय बना दिया है भारत के पुरातत्व विभाग के द्वारा तालों में बंद रखा जाता है। सामान्य दर्शनार्थियों को इनके विषय में अंधेरे में रखा जाता है। इन 22 कमरों के दीवारों तथा भीतरी छतों पर अभी भी प्राचीन हिंदू चित्रकारी अंकित हैं। इन कमरों से लगा हुआ लगभग 33 फुट लंबा गलियारा है। गलियारे के दोनों सिरों में एक एक दरवाजे बने हुये हैं। इन दोनों दरवाजों को इस प्रकार से आकर्षक रूप से ईंटों और गारा से चुनवा दिया गया है कि वे दीवाल जैसे प्रतीत हों। स्पष्तः मूल रूप से शाहज़हां के द्वारा चुनवाये गये इन दरवाजों को कई बार खुलवाया और फिर से चुनवाया गया है। सन् 1934 में दिल्ली के एक निवासी ने चुनवाये हुये दरवाजे के ऊपर पड़ी एक दरार से झाँक कर देखा था। उसके भीतर एक वृहत कक्ष (huge hall) और वहाँ के दृश्य को‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ देख कर वह हक्का-बक्का रह गया तथा भयभीत सा हो गया। वहाँ बीचोबीच भगवान शिव का चित्र था जिसका सिर कटा हुआ था और उसके चारों ओर बहुत सारे मूर्तियों का जमावड़ा था। ऐसा भी हो सकता है कि वहाँ पर संस्कृत के शिलालेख भी हों। यह सुनिश्चित करने के लिये कि ताजमहल हिंदू चित्र, संस्कृत शिलालेख, धार्मिक लेख, सिक्के तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं जैसे कौन कौन से साक्ष्य छुपे हुये हैं उसके के सातों मंजिलों को खोल कर उसकी साफ सफाई करने की नितांत आवश्यकता है। अध्ययन से पता चलता है कि इन बंद कमरों के साथ ही साथ ताज के चौड़ी दीवारों के बीच में भी हिंदू चित्रों, मूर्तियों आदि छिपे हुये हैं। सन् 1959 से 1962 के अंतराल में श्री एस.आर. राव, जब वे आगरा पुरातत्व विभाग के सुपरिन्टेन्डेंट हुआ करते थे, का ध्यान ताजमहल के मध्यवर्तीय अष्टकोणीय कक्ष के दीवार में एक चौड़ी दरार पर गया। उस दरार का पूरी तरह से अध्ययन करने के लिये जब दीवार की एक परत उखाड़ी गई तो संगमरमर की दो या तीन प्रतिमाएँ वहाँ से निकल कर गिर पड़ीं। इस बात को खामोशी के साथ छुपा दिया गया और प्रतिमाओं को फिर से वहीं दफ़न कर दिया गया जहाँ शाहज़हां के आदेश से पहले दफ़न की गई थीं। इस बात की पुष्टि अनेक अन्य स्रोतों से हो चुकी है। जिन दिनों मैंने ताज के पूर्ववर्ती काल के विषय में खोजकार्य आरंभ किया उन्हीं दिनों मुझे इस बात की जानकारी मिली थी जो कि अब तक एक भूला बिसरा रहस्य बन कर रह गया है। ताज के मंदिर होने के प्रमाण में इससे अच्छा साक्ष्य और क्या हो सकता है? उन देव प्रतिमाओं को जो शाहज़हां के द्वारा ताज को हथियाये जाने से पहले उसमें प्रतिष्ठित थे ताज की दीवारें और चुनवाये हुये कमरे आज भी छुपाये हुये हैं। शाहज़हां के पूर्व के ताज के संदर्भ स्पष्टतः के केन्द्रीय भवन का इतिहास अत्यंत पेचीदा प्रतीत होता है। शायद महमूद गज़नी और उसके बाद के मुस्लिम प्रत्येक आक्रमणकारी ने लूट कर अपवित्र किया है परंतु हिंदुओं का इस पर पुनर्विजय के बाद पुनः भगवान शिव की प्रतिष्ठा करके इसकी पवित्रता को फिर से बरकरार कर दिया जाता था। शाहज़हां अंतिम मुसलमान था जिसने तेजोमहालय उर्फ ताजमहल के पवित्रता को भ्रष्ट किया। विंसेंट स्मिथ अपनी पुस्तक 'Akbar the Great Moghul' में लिखते हैं, "बाबर ने सन् 1630 आगरा के वाटिका वाले महल में अपने उपद्रवी जीवन से मुक्ति पाई"। वाटिका वाला वो महल यही ताजमहल था। बाबर की पुत्री गुलबदन 'हुमायूँनामा' नामक अपने ऐतिहासिक वृतांत में ताज का संदर्भ 'रहस्य महल' (Mystic House) के नाम से देती है। बाबर स्वयं अपने संस्मरण में इब्राहिम लोधी के कब्जे में एक मध्यवर्ती अष्टकोणीय चारों कोणों में चार खम्भों वाली इमारत का जिक्र करता है जो कि ताज ही था। ये सारे संदर्भ ताज के शाहज़हां से कम से कम सौ साल पहले का होने का संकेत देते हैं। ताजमहल की सीमाएँ चारों ओर कई सौ गज की दूरी में फैली हुई है। नदी के पार ताज से जुड़ी अन्य भवनों, स्नान के घाटों और नौका घाटों के अवशेष हैं। विक्टोरिया गार्डन के बाहरी हिस्से में एक लंबी, सर्पीली, लताच्छादित प्राचीन दीवार है जो कि एक लाल पत्थरों से बनी अष्टकोणीय स्तंभ तक जाती है। इतने वस्तृत भूभाग को कब्रिस्तान का रूप दे दिया गया। यदि ताज को विशेषतः मुमताज़ के दफ़नाने के लिये बनवाया गया होता तो वहाँ पर अन्य और भी कब्रों का जमघट नहीं होता। परंतु ताज प्रांगण में अनेक कब्रें विद्यमान हैं कम से कम उसके पूर्वी एवं दक्षिणी भागों के गुम्बजदार भवनों में। दक्षिणी की ओर ताजगंज गेट के दूसरे किनारे के दो गुम्बजदार भवनों में रानी सरहंडी ब़ेगम, फतेहपुरी ब़ेगम और कु. सातुन्निसा को दफ़नाया गया है। इस प्रकार से एक साथ दफ़नाना तभी न्यायसंगत हो सकता है जबकि या तो रानी का दर्जा कम किया गया हो या कु. का दर्जा बढ़ाया गया हो। शाहज़हां ने अपने वंशानुगत स्वभाव के अनुसार ताज को एक साधारण मुस्लिम कब्रिस्तान के रूप में परिवर्तित कर के रख दिया क्योंकि उसने उसे अधिग्रहित किया था (ध्यान रहे बनवाया नहीं था)। शाहज़हां ने मुमताज़ से निक़ाह के पहले और बाद में भी कई और औरतों से निक़ाह किया था, अतः मुमताज़ को कोई ह़क नहीँ था कि उसके लिये आश्चर्यजनक कब्र बनवाया जावे। मुमताज़ का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था और उसमें ऐसा कोई विशेष योग्यता भी नहीं थी कि उसके लिये ताम-झाम वाला कब्र बनवाया जावे। शाहज़हां तो केवल एक मौका ढूंढ रहा था कि कैसे अपने क्रूर सेना के साथ मंदिर पर हमला करके वहाँ की सारी दौलत हथिया ले, मुमताज़ को दफ़नाना तो एक बहाना मात्र था। इस बात की पुष्टि बादशाहनामा में की गई इस प्रविष्टि से होती है कि मुमताज़ की लाश को बुरहानपुर के कब्र से निकाल कर आगरा लाया गया और 'अगले साल' दफ़नाया गया। बादशाहनामा जैसे अधिकारिक दस्तावेज़ में सही तारीख के स्थान पर 'अगले साल' लिखने से ही जाहिर होता है कि शाहज़हां दफ़न से सम्बंधित विवरण को छुपाना चाहता था। विचार करने योग्य बात है कि जिस शाहज़हां ने मुमताज़ के जीवनकाल में उसके लिये एक भी भवन नहीं बनवाया, मर जाने के बाद एक लाश के लिये आश्चर्यमय कब्र कभी नहीं बनवा सकता। एक विचारणीय बात यह भी है कि शाहज़हां के बादशाह बनने के तो या तीन साल बाद ही मुमताज़ की मौत हो गई। तो क्या शाहज़हां ने इन दो तीन साल के छोटे समय में ही इतना अधिक धन संचय कर लिया कि एक कब्र बनवाने में उसे उड़ा सके? जहाँ इतिहास में शाहज़हां के मुमताज़ के प्रति विशेष आसक्ति का कोई विवरण नहीं मिलता वहीं शाहज़हां के अनेक औरतों के साथ, जिनमें दासी, औरत के आकार के पुतले, यहाँ तक कि उसकी स्वयं की बेटी जहांआरा भी शामिल है, के साथ यौन सम्बंधों ने उसके काल में अधिक महत्व पाया। क्या शाहज़हां मुमताज़ की लाश पर अपनी गाढ़ी कमाई लुटाता? शाहज़हां एक कृपण सूदखोर बादशाह था। अपने सारे प्रतिद्वंदियों का कत्ल करके उसने राज सिंहासन प्राप्त किया था। जितना खर्चीला उसे बताया जाता है उतना वो हो ही नहीं सकता था। मुमताज़ की मौत से खिन्न शाहज़हां ने एकाएक ताज बनवाने का निश्चय कर लिया। ये बात एक मनोवैज्ञानिक असंगति है। दुख एक ऐसी संवेदना है जो इंसान को अयोग्य और अकर्मण्य बनाती है। शाहज़हां यदि मूर्ख या बावला होता तो समझा जा सकता है कि वो मृत मुमताज़ के लिये ताज बनवा सकता है परंतु सांसारिक और यौन सुख में लिप्त शाहज़हां तो कभी भी ताज नहीं बनवा सकता क्योंकि यौन भी इंसान को अयोग्य बनाने वाली संवेदना है। सन् 1973 के आरंभ में जब ताज के सामने वाली वाटिका की खुदाई हुई तो वर्तमान फौवारों के लगभग छः फुट नीचे और भी फौवारे पाये गये। इससे दो बातें सिद्ध होती हैं। पहली तो यह कि जमीन के नीचे वाले फौवारे शाहज़हां के काल से पहले ही मौजूद थे। दूसरी यह कि पहले से मौजूद फौवारे चूँकि ताज से जाकर मिले थे अतः ताज भी शाहज़हां के काल से पहले ही से मौजूद था। स्पष्ट है कि इस्लाम शासन के दौरान रख रखाव न होने के कारण ताज के सामने की वाटिका और फौवारे बरसात के पानी की बाढ़ में डूब गये थे। ताजमहल के ऊपरी मंजिल के गौरवमय कक्षों से कई जगह से संगमरमर के पत्थर उखाड़ लिये गये थे जिनका उपयोग मुमताज़ के नकली कब्रों को बनाने के लिये किया गया। इसी कारण से ताज के भूतल के फर्श और दीवारों में लगे मूल्यवान संगमरमर के पत्थरों की तुलना में ऊपरी तल के कक्ष भद्दे, कुरूप और लूट का शिकार बने नजर आते हैं। चूँकि ताज के ऊपरी तलों के कक्षों में दर्शकों का प्रवेश वर्जित है, शाहज़हां के द्वारा की गई ये बरबादी एक सुरक्षित रहस्य बन कर रह गई है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि मुगलों के शासन काल की समाप्ति के 200 वर्षों से भी अधिक समय व्यतीत हो जाने के बाद भी शाहज़हां के द्वारा ताज के ऊपरी कक्षों से संगमरमर की इस लूट को आज भी छुपाये रखा जावे। फ्रांसीसी यात्री बेर्नियर ने लिखा है कि ताज के निचले रहस्यमय कक्षों में गैर मुस्लिमों को जाने की इजाजत नहीं थी क्योंकि वहाँ चौंधिया देने वाली वस्तुएँ थीं। यदि वे वस्तुएँ शाहज़हां ने खुद ही रखवाये होते तो वह जनता के सामने उनका प्रदर्शन गौरव के साथ करता। परंतु वे तो लूटी हुई वस्तुएँ थीं और शाहज़हां उन्हें अपने खजाने में ले जाना चाहता था इसीलिये वह नहीं चाहता था कि कोई उन्हें देखे। ताज की सुरक्षा के लिये उसके चारों ओर खाई खोद कर की गई है। किलों, मंदिरों तथा भवनों की सुरक्षा के लिये खाई बनाना हिंदुओं में सामान्य सुरक्षा व्यवस्था रही है। पीटर मुंडी ने लिखा है कि शाहज़हां ने उन खाइयों को पाटने के लिये हजारों मजदूर लगवाये थे। यह भी ताज के शाहज़हां के समय से पहले के होने का एक लिखित प्रमाण है। नदी के पिछवाड़े में हिंदू बस्तियाँ, बहुत से हिंदू प्राचीन घाट और प्राचीन हिंदू शव-दाह गृह है। यदि शाहज़हाँ ने ताज को बनवाया होता तो इन सबको नष्ट कर दिया गया होता। यह कथन कि शाहज़हाँ नदी के दूसरी तरफ एक काले पत्थर का ताज बनवाना चाहता था भी एक प्रायोजित कपोल कल्पना है। नदी के उस पार के गड्ढे मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा हिंदू भवनों के लूटमार और तोड़फोड़ के कारण बने हैं न कि दूसरे ताज के नींव खुदवाने के कारण। शाहज़हां, जिसने कि सफेद ताजमहल को ही नहीं बनवाया था, काले ताजमहल बनवाने के विषय में कभी सोच भी नहीं सकता था। वह तो इतना कंजूस था कि हिंदू भवनों को मुस्लिम रूप देने के लिये भी मजदूरों से उसने सेंत मेंत में और जोर जबर्दस्ती से काम लिया था। न तो संगमरमर के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं उनके रंग में पीलापन है जबकि शेष पत्थर ऊँची गुणवत्ता वाले शुभ्र रंग के हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि कुरान की आयतों वाले पत्थर बाद में लगाये गये हैं। कुछ कल्पनाशील इतिहासकारों तो ने ताज के भवननिर्माणशास्त्री के रूप में कुछ काल्पनिक नाम सुझाये हैं पर और ही अधिक कल्पनाशील इतिहासकारों ने तो स्वयं शाहज़हां को ताज के भवननिर्माणशास्त्री होने का श्रेय दे दिया है जैसे कि वह सर्वगुणसम्पन्न विद्वान एवं कला का ज्ञाता था। ऐसे ही इतिहासकारों ने अपने इतिहास के अल्पज्ञान की वजह से इतिहास के साथ ही विश्वासघात किया है वरना शाहज़हां तो एक क्रूर, निरंकुश, औरतखोर और नशेड़ी व्यक्ति था और भी कई भ्रमित करने वाली लुभावनी बातें बना दी गई हैं। कुछ लोग विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि शाहज़हां ने पूरे संसार के सर्वश्रेष्ठ भवननिर्माणशास्त्रियों से संपर्क करने के बाद उनमें से एक को चुना था। तो कुछ लोगों का यग विश्वास है कि उसने अपने ही एक भवननिर्माणशास्त्री को चुना था। यदि यह बातें सच होती तो शाहज़हां के शाही दस्तावेजों में इमारत के नक्शों का पुलिंदा मिला होता। परंतु वहाँ तो नक्शे का एक टुकड़ा भी नहीं है। नक्शों का न मिलना भी इस बात का पक्का सबूत है कि ताज को शाहज़हां ने नहीं बनवाया। ताजमहल बड़े बड़े खंडहरों से घिरा हुआ है जो कि इस बात की ओर इशारा करती है कि वहाँ पर अनेक बार युद्ध हुये थे। ताज के दक्षिण में एक प्रचीन पशुशाला है। वहाँ पर तेजोमहालय के पालतू गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गाय कोठा होना एक असंगत बात है। ताज के पश्चिमी छोर में लाल पत्थरों के अनेक उपभवन हैं जो कि एक कब्र के लिया अनावश्यक है। संपूर्ण ताज में 400 से 500 कमरे हैं। कब्र जैसे स्थान में इतने सारे रहाइशी कमरों का होना समझ के बाहर की बात है। ताज के पड़ोस के ताजगंज नामक नगरीय क्षेत्र का स्थूल सुरक्षा दीवार ताजमहल से लगा हुआ है। ये इस बात का स्पष्ट निशानी है कि तेजोमहालय नगरीय क्षेत्र का ही एक हिस्सा था। ताजगंज से एक सड़क सीधे ताजमहल तक आता है। ताजगंज द्वार ताजमहल के द्वार तथा उसके लाल पत्थरों से बनी अष्टकोणीय वाटिका के ठीक सीध में है। ताजमहल के सभी गुम्बजदार भवन आनंददायक हैं जो कि एक मकब़रे के लिय उपयुक्त नहीं है। आगरे के लाल किले के एक बरामदे में एक छोटा सा शीशा लगा हुआ है जिससे पूरा ताजमहल प्रतिबिंबित होता है। ऐसा कहा जाता है कि शाहज़हां ने अपने जीवन के अंतिम आठ साल एक कैदी के रूप में इसी शीशे से ताजमहल को देखते हुये और मुमताज़ के नाम से आहें भरते हुये बिताया था। इस कथन में अनेक झूठ का संमिश्रण है। सबसे पहले तो यह कि वृद्ध शाहज़हां को उसके बेटे औरंगज़ेब ने लाल किले के तहखाने के भीतर कैद किया था न कि सजे-धजे और चारों ओर से खुले ऊपर के मंजिल के बरामदे में। दूसरा यह कि उस छोटे से शीशे को सन् 1930 में इंशा अल्लाह ख़ान नामक पुरातत्व विभाग के एक चपरासी ने लगाया था केवल दर्शकों को यह दिखाने के लिये कि पुराने समय में लोग कैसे पूरे तेजोमहालय को एक छोटे से शीशे के टुकड़े में देख लिया करते थे। तीसरे, वृद्ध शाहज़हाँ, जिसके जोड़ों में दर्द और आँखों में मोतियाबिंद था घंटो गर्दन उठाये हुये कमजोर नजरों से उस शीशे में झाँकते रहने के काबिल ही नहीं था जब लाल किले से ताजमहल सीधे ही पूरा का पूरा दिखाई देता है तो छोटे से शीशे से केवल उसकी परछाईं को देखने की आवश्कता भी नहीं है। पर हमारी भोली-भाली जनता इतनी नादान है कि धूर्त पथप्रदर्शकों (guides) की इन अविश्वासपूर्ण और विवेकहीन बातों को आसानी के साथ पचा लेती है। ताजमहल के गुम्बज में सैकड़ों लोहे के छल्ले लगे हुये हैं जिस पर बहुत ही कम लोगों का ध्यान जा पाता है। इन छल्लों पर मिट्टी के आलोकित दिये रखे जाते थे जिससे कि संपूर्ण मंदिर आलोकमय हो जाता था। ताजमहल पर शाहज़हां के स्वामित्व तथा शाहज़हां और मुमताज़ के अलौकिक प्रेम की कहानी पर विश्वास कर लेने वाले लोगों को लगता है कि शाहज़हाँ एक सहृदय व्यक्ति था और शाहज़हां तथा मुमताज़ रोम्यो और जूलियट जैसे प्रेमी युगल थे। परंतु तथ्य बताते हैं कि शाहज़हां एक हृदयहीन, अत्याचारी और क्रूर व्यक्ति था जिसने मुमताज़ के साथ जीवन भर अत्याचार किये थे। विद्यालयों और महाविद्यालयों में इतिहास की कक्षा में बताया जाता है कि शाहज़हां का काल अमन और शांति का काल था तथा शाहज़हां ने अनेकों भवनों का निर्माण किया और अनेक सत्कार्य किये जो कि पूर्णतः मनगढ़ंत और कपोल कल्पित हैं। जैसा कि इस ताजमहल प्रकरण में बताया जा चुका है, शाहज़हां ने कभी भी कोई भवन नहीं बनाया उल्टे बने बनाये भवनों का नाश ही किया और अपनी सेना की 48 टुकड़ियों की सहायता से लगातार 30 वर्षों तक अत्याचार करता रहा जो कि सिद्ध करता है कि उसके काल में कभी भी अमन और शांति नहीं रही। जहाँ मुमताज़ का कब्र बना है उस गुम्बज के भीतरी छत में सुनहरे रंग में सूर्य और नाग के चित्र हैं। हिंदू योद्धा अपने आपको सूर्यवंशी कहते हैं अतः सूर्य का उनके लिये बहुत अधिक महत्व है जबकि मुसलमानों के लिये सूर्य का महत्व केवल एक शब्द से अधिक कुछ भी नहीं है। और नाग का सम्बंध भगवान शंकर के साथ हमेशा से ही रहा है।  झूठे दस्तावेज़ ताज के गुम्बज की देखरेख करने वाले मुसलमानों के पास एक दस्तावेज़ है जिसे के वे "तारीख-ए-ताजमहल" कहते हैं। इतिहासकार एच.जी. कीन ने उस पर 'वास्तविक न होने की शंका वाला दस्तावेज़' का मुहर लगा दिया है। कीन का कथन एक रहस्यमय सत्य है क्योंकि हम जानते हैं कि जब शाहज़हां ने ताजमहल को नहीं बनवाया ही नहीं तो किसी भी दस्तावेज़ को जो कि ताजमहल को बनाने का श्रेय शाहज़हां को देता है झूठा ही माना जायेगा। पेशेवर इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता तथा भवनशास्त्रियों के दिमाग में ताज से जुड़े बहुत सारे कुतर्क और चतुराई से भरे झूठे तर्क या कम से कम भ्रामक विचार भरे हैं। शुरू से ही उनका विश्वास रहा है कि ताज पूरी तरह से मुस्लिम भवन है। उन्हें यह बताने पर कि ताज का कमलाकार होना, चार स्तंभों का होना आदि हिंदू लक्षण हैं, वे गुणवान लोग इस प्रकार से अपना पक्ष रखते हैं कि ताज को बनाने वाले कारीगर, कर्मचारी आदि हिंदू थे और शायद इसीलिये उन्होंने हिंदू शैली से उसे बनाया। पर उनका पक्ष गलत है क्योंकि मुस्लिम वृतान्त दावा करता है कि ताज के रूपांकक (designers) बनवाने वाले शासक मुस्लिम थे, और कारीगर, कर्मचारी इत्यादि लोग मुस्लिम तानाशाही के विरुद्ध अपनी मनमानी कर ही नहीं सकते थे।  ताजमहल में कलश की आकृति इस्‍लाम का मुख्‍य काम भारत को लूटना मात्र था, उन्‍होने तत्‍कालीन मन्दिरो अपना निशाना बनया, वास्ताव में ताजमहल तेजोमहल शिव मन्दिर है। हिन्‍दू मंदिर उस समय अपने ऐश्वर्य के चरम पर रहे थे। इसी प्रकार आज का ताजमहल नाम से विख्‍यात तेजोमहाजय को भी अपना निशाना बनाया। मुस्लिम शासकों ने देश के हिंदू भवनों को मुस्लिम रूप देकर उन्हें बनवाने का श्रेय स्वयं ले लिया इस बात का ताज एक आदर्श उदारहरण है।  ताजमहल में ॐ की आकृति लिए के फूल चित्रो के झरोखे मे तर्क जिनके आधार पर काफी सच्‍चाई ओक साहब ने हमारे सामने रखी है -जो ताजमहल नही तेजोमहालय : एक प्राचीन शिव मंदिर तथ्यों के साथ रखी गयी है। आगरा का ताजमहल दिखाओ, आगरा का ताजमहल विडियो, आगरा का लाल किला, उस्ताद अहमद लाहौरी, ताज महल आगरा, ताज महल इतिहास, ताज महल का रहस्य, ताज महल किसने बनवाया था, ताज महल के बारे मे जानकारी, ताज महल क्या है, ताज महल पर निबंध, ताज महल फोटो, ताजमहल एक शिव मंदिर, ताजमहल का इतिहास, ताजमहल का फोटो, ताजमहल का सच, ताजमहल किसने बनवाया, ताजमहल दफ़नाए गए, ताजमहल पर निबंध, तेजो महालय शिव मंदिर, दिल्ली का लाल किला, मुमताज महल का इतिहास, रहस्य फिल्म, सुल्तान शाह जहाँ बेगम ऑफ़ भोपाल, हुमायूँ का मकबरा दफ़नाए गए, हुमायूँ बच्चे,              Taj Mahal Ki Is Sankshitp Kahani Ko Hindi Me लाने मे मेरा योगदान उतना ही है जितना कि रामसेतु के निर्माण में गिलहरी का था, श्रेय मूल लेखक श्री ओक साहब तथा अन्‍य प्रत्‍यक्ष व परोक्ष रूप से लगे सभी इतिहास प्रेमियो को। ताजमहल महल पर आधारित अन्य लेख ताजमहल नही तेजोमहालय : एक प्राचीन शिव मंदिर तथ्य और चित्र ताजमहल नही तेजोमहालय: शिव मंदिर होने का मिला साक्ष्य ताजमहल का इतिहास - ताज मकबरा नही अग्रेश्वर महदेव शिव ताजमहल के इन दरवाजों में दफन हैं कई रहस्य बाबर के समय में भी था ताजमहल अर्थात तेजोमहालय ! Pramendra Pratap Singh at 12:34 PM 213 comments:  अवधिया चाचा19 December, 2009 12:54 हमने अवध गये बगैर ही जान लिया बेवकूफों के सींग नहीं होते वह भी हमारे तुम्‍हारे जैसे होते हैं, शाहजहां का नाम ताजुद्दीन और उधर बेगम का खिताब मुमताज महल, दोनों का ताज और महल लेके बना ताजमहल,सबके सामने बना, कैसे, क्‍यूं आदि आगे की कहानी काशिफ भाई आगरे वाले सुनाएंगे, अब तो दो ही इच्‍छा हैं एक काशिफ भाई का ब्‍यान पढने की दूसरा अवध देखने की देखते हैं पहले कौन सी पूरी होती है अवधिया चाचा जो कभी अवध न गया जानबूझकर बेनामी19 December, 2009 13:13 हम कितना भी बोलें और तथ्य दें परंतु ये झंडू लोग मानने वाले नहीं हैं, जैसे अयोध्या और मथुरा के लिये नहीं मानते हैं, अगर इनका बस चले तो ये तो यह भी साबित करे दें कि पैगम्बर मोहम्मद हिन्दुस्तान में पैदा हुए थे और ये उनकी औलादें हैं, कभी ये मानने को तैयार नहीं होंगे कि ये सब हिन्दू से झंडू में कनवर्टी हैं, जैसे कि वो क्रास वाले नहीं मानते हैं, जैसे सब के सब सूलीवाले के सगे संबंधी हैं। और तो और हमारी भारत सरकार भी यह मान लेगी। Suresh Chiplunkar19 December, 2009 13:26 ओक साहब के लेख को बिन्दु दर बिन्दु अच्छा लिखा है आपने, बहुत मेहनत से लिखा गया है… प्रमाण उन्हें दिये जाते हैं जो कुछ सोचने की इच्छाशक्ति और उतना दिमाग रखते हों…, वामपंथियों और सेकुलरों को नहीं।  vikas mehta19 December, 2009 13:35 lekh bahut lamba hai isliye kuchek lain padhunga lekin ye avdhya ko mirchi kaise lagi  A. Arya19 December, 2009 13:38 बहूत दिनो के बाद ब्लॉग्स मे एसी पोस्ट देखने को मिली, धन्यवाद. शायद आप मे से कुछ लोग जानते भी हैं की कुछ दसको पहले इसके बारे मे किताब निकली थी लेकिन हमारी सम्माननीय कांग्रेस सरकार ने फूल बेन लगा दिया था उस किताब पर जो दुबारा नही दिखी, इसी सिलसिले को समझने के लिए मे तीन बार ताजमहल जा चुका हू, जबकि मे आगरा से ४०० किलोमीटेर दूर से हू, हो सके तो ये साइड देख सकते हैं http://www.stephen-knapp.com/was_the_taj_mahal_a_vedic_temple.htm  Unknown24 July, 2016 10:56 Jay mataji.... Mr.a arya app muje apna contact no.dijiye. muje apse jaruri bat krni hai...plz..  Hardik Kotila24 July, 2016 10:58 Jay mataji Mr. A arya. Ap muje apna contect no. Dijiye. Muje apse jaruri bat krni hai...plz  Tarkeshwar Giri19 December, 2009 14:37 बहुत अच्छा लगा आपका तर्क वार लेख पढ़ कर के बहुत ही मजा आया। अवधिया जी को तो लगता है की मुझे ही अवध लेकर के जाना पड़ेगा।  DIVINEPREACHINGS19 December, 2009 18:50 प्रिय भाई, बहुत अच्छा किया आपने इस लेख का अनुवाद कर दिया ...इसका लिंक तो हमने भी अपने 6 दिसम्बर के ब्लाग http://hinduasmita.blogspot.com/2009/12/blog-post.html में दिया था लेकिन आप इसे हिन्दी में अनुदित न करते तो हमारे अस्वच्छ मित्र इसे कैसे पढ पाते । पते की बात चिपलूनकरजी ने कह ही दी है ...वही सत्य है ।  dhiru singh {धीरू सिंह}19 December, 2009 20:33 आखिर क्या होगा पढ कर .ओक साहब ने तो इतिहास को कई बार छाना है . इन बातो को बस्ते मे ही रहने दे तो सही रहेगा . इन बातो मे हमारी ही नपुन्सकता छ्लकती है  काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif19 December, 2009 20:36 लो जी.......आप ने भी पी.एन.ओके साहब की रिसर्च पर आखं बन्द करके यकीन कर लिया... ये भी हो सकता है क्यौंकि जब सुरेश चिपलुनकर जैसा अक्लमंद शख्स यकीन कर सकता है तो आपके बारे में हम कैसे शिकायत कर सकते है.... बरहाल सुरेश जी के लेख का तीसरा भाग अब तक नही आया है और आयेगा भी नही......  प्रवीण शाह19 December, 2009 21:01 . . . बहुत खूब महाशक्ति जी, मुझे काफी समय से आपके इस आलेख का इन्तजार था। अच्छा किया आपने आज इसे लिख ही दिया... दिल का गर्दो-गुबार बाहर तो आया कम से कम... मैंने यहां पर काफी पहले लिखा था कि भगवा ध्वजधारी हरदम यह कहते हैं:- "५-लाल किला, कुतुब मीनार, ताज महल आदि आदि जो भी पुरानी प्रसिद्ध इमारतें हैंवो हमारे धर्म के शासकों ने बनाई, दूसरे धर्म के शासकों ने अपने शासन काल में उन्हें स्वयं द्वारा बनाया प्रचारित कर दिया।" मैं खुश हूँ आपने आज मुझे सही साबित कर दिया...... :) अब जब यह सवाल उठा ही दिया है तो बता दूं कि इस सवाल पर २००० में उच्चतम न्यायालय और २००५ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जम कर बहस हो चुकी है तथा सभी पक्षों और विषय विशेषज्ञों को सुन कर माननीय न्यायालयों ने क्या कहा उसे यहाँ पर औरयहाँ पर भी देख सकते हैं आप! उद्धृत करता हूँ:- "On July 14 2000 the Supreme Court in New Delhi dismissed a petition that sought to force a declaration that a Hindu king built Taj Mahal, as P.N. Oak has claimed. The court reprimanded the petitioner saying he had a "bee in his bonnet" about the Taj. In 2005 a similar petition was dismissed by the Allahabad High Court. This case was brought by Amar Nath Mishra, a social worker and preacher who says that the Taj Mahal was built by the Hindu King Parmar Dev in 1196." "bee in his bonnet" ??? आपको नहीं लगता कि माननीय न्यायालय ने श्री पी० एन० ओक साहब को Reprimand करते हुऐ कुछ ज्यादा ही सख्त शब्दों का प्रयोग किया था... या शायद वह इन्ही शब्दों को deserve करते थे ? अब सेकुलर कहो या वामपंथी, क्या करूं मित्र, भारत का नागरिक हूँ अत: मैं तो माननीय न्यायालय के निर्णय को ही मानूंगा! आदरणीय सुरेश जी को सादर प्रणाम के साथ...  महाशक्ति19 December, 2009 21:15 प्रवीण जी मुझे हंसी आ रही है आपकी मूर्खता भरी बातो पर, अगर आपको न्‍यायालय पर बडा भरोसा है एक मुक्कदमा अपने उपर कायम करवा लो फिर देखेगे कि कितना विश्‍वास है :) न्‍यायालय पर टिप्‍पणी करने से बचना चाहिये किन्‍तु आज की स्थिति देखने से तो यही लग रहा है कि कुछ पर महाभियोग लग रहा है तो किसी की पदोन्‍नति रो‍की जा रही है। गरीबो को न्‍याय की बात छोड़ दी जाये तो आज राम भी बिन छत के रहने को मजबूर है। न्‍यायालय भी इन विवादो से बचना चाहता है कही पटना के जज की तरह अन्‍य जजो अपना तबादला करवाने के लिये रिक्‍वेस्‍ट करनी पढ़े।  काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif19 December, 2009 21:16 चलिये अब आपके लेख और पी.एन.ओके. साहब की रिसर्च के बारे में बात करते है....वो भी बिन्दुवार हमारे स्टाइल में... मुझे इस बात पर हैरत हो रही है की आपने पी.एन.ओके साहब की रिसर्च का अनुवाद किया है जिसे पी.एन.ओके साहब का नाम भी नही पता..... Purushottam Nagesh Oak (March 2, 1917 - December 4, 2007) उनका मध्य नाम "नागेश" था "नाथ" नही..... जैसा की अवधिया चाचा आपको बता चुके है की शाहजंहा का असली नाम "ताजउद्दीन" था और उसकी पत्नी का नाम "मुमताज़-उल-ज़मानी" था लेकिन उसे "मुमताज़ महल" का खिताब दिया गया था.......जैसे जलालउद्दीन मौहम्मद को "अकबर" का खिताब दिया गया था। जिन युरोपीय लोगों की बात पी.एन.ओके साहब कर रहे है तो हिन्दी और ऊर्दु के ना जानने वालों के द्वारा ताजमहल को "ताज-ए-महल" कहना कोई बडी बात नही है लेकिन फ़िर भी इस बात का ज़िक्र किन किताबों में किया गया है उसका कोई उल्लेख नही है यहां पर.... पी.एन.ओके. साहब ने कहा "'ताज' और 'महल' दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं।" मैं आपसे एक सवाल पुछना चाहुंगा की कौन से संस्कर्त शब्दकोष में "ताज" और "महल" शब्दों का ज़िक्र है????? इस बात का जवाब आप दीजियेगा.....इस तरह आपके लेख के (क्रम संख्‍या 1 से 8 तक) बेमानी हो गये....  काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif19 December, 2009 21:26 (क्रम संख्‍या 9 से 17 तक).... तेजोमहल को "ताजमहल" लोगों ने कब कहना शुरु किया इसका भी ज़िक्र तारीख के साथ कर देते तो अच्छा होता.. आप कभी किसी मज़ार में गये हो??? जाकर देखना आपसे जुते बाहर ही उतरवा दिये जायेंगे....शाहजंहा ने अपनी बीवी का मकबरा बनवाया था और ख्वाहिश की थी मुझे भी उसी बिल्डिंग में द्फ़नाया जायें.....और आज के मुनाफ़खोरों ने उसे दरगाह की शक्ल दे दी है और हर साल शाहजंहा का ऊर्स मनाया जाता है.... पच्चीकारी दोनों जगह है...नीचे भी और ऊपर भी....  काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif19 December, 2009 21:46 (क्रम संख्‍या 11 से 17 तक).... जनाब आपने शायद ताजमहल की जालियों को गौर से देखा नही उस जाली में 108 से कम या ज़्यादा बन नही सकते थे.....और वैसे हिन्दु धर्म में 108 कैसे शुभ है और इसे कौन शुभ मानता इसका जवाब आप दे दें क्यौंकि पी.एन.ओके साहब तो अब दुनिया में नही है और वैसे भी उन्होने कभी किसी सवाल का जवाब नही दिया वो तो विवाद पैदा करने के बाद खामोश हो गये थे.... वो कौन लोग है आप मुझे उनसे मिलायेंगे...मैनें अपने एन.सी.सी. के दिनों में ताजमहल पर एक प्रोजेक्ट बनाया था...उस हिसाब 2003 में इसकी मरम्मत और रखरखाव का हर ठेका उठता है जो लोग हर दो तीन महीनों में मुलतानी मिट्टी का लेप लगाकर ताजमहल के संगमरमर को साफ़ करते है....और ये परम्परा आज़ादी के वक्त से चली आ रही है..... क्र्मांक 14 और 15 सिर्फ़ सम्भावनाये हैं... 16 के बारें में मैनें कभी नही सुना...जबकि मैं तो आगरा में ही रहता हूं और मेरा जन्म भी यहीं हुआ है.... P.N.Oak साहब से किसने कहा की आगरा जाटो की नगरी है.....आगरा में हमेशा से हर ज़ात से लोग रह्ते रहे है... P.N.Oak साहब के शोधों की सबसे बडी कमज़ोरी जो रही है वो है सम्भावनाओं का होना.....उन्होने कहीं भी सबुतों को पेश नही किया है सिर्फ़ सम्भावनायें दर्शायी है.....और 14, 15, & 17 में भी सिर्फ़ सम्भावनायें ही है......  Unknown14 July, 2016 21:56 पहले ये बताओ की ईद क्यों मानते हो और पैगम्बर हिन्दू थे या मुस्लमान कैसे  Jyotindra Kundan14 July, 2016 22:20 पहले ये बताओ की ईद क्यों मानते हो और पैगम्बर हिन्दू थे या मुस्लमान कैसे  प्रवीण शाह19 December, 2009 21:56 . . . @ महाशक्ति, "प्रवीण जी मुझे हंसी आ रही है आपकी मूर्खता भरी बातो पर," मेरे बारे में आप अपने ऐसे विचार रखने के लिये स्वतंत्र हैं और आपकी इस स्वतंत्रता का मैं पूरा सम्मान करता हूँ, पर एक स्वयंभू प्रोफेसर(???) इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता और CONSPIRACY THEORIST की अनर्गल रिसर्च को यदि आप इतना महत्व दे रहे हैं... तो संदर्भ सहित यह भी बता दें कि कहाँ पर और कितने विषय विशेषज्ञ इन बातों से सहमत हुऐ हैं आज तक ? मुगल शासन भी हमारे देश के इतिहास के एक महत्वपूर्ण कालखंड का प्रतिनिधित्व करता है... और उस काल की स्थापत्य कला की उपलब्धियों को यों नकार कर किसी का कोई हित नहीं सधेगा।  santosh19 December, 2009 22:13 aapko saadhuvaad  काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif19 December, 2009 22:22 (क्रम संख्‍या 18 से 24 तक... P.N.Oak no.18 में खुद भट्क गये हैं....पुरी रिसर्च को उन्होने नाम दिया है कि "ताजमहल" शिव जी का मन्दिर था और अब यहां वो कह रहे है की... "मुमताज को दफ़नाने के लिये जयपुर के महाराजा जयसिंह से एक चमकदार, बड़े गुम्बद वाला विशाल भवन (इमारत-ए-आलीशान व गुम्ब़ज) लिया गया जो कि राजा मानसिंह के भवन के नाम से जाना जाता था।" अब जब ताजमहल राजा मानसिंह का भवन था तो वो तेजोमहल कैसे हुआ???? और अगर वो तेजोमहल था तो जयसिंह जी ने शाहजंहा को क्यौं दिया जबकि उन्हे मालुम था की इसमें वो अपनी बीवी को दफ़नायेगा??????? जयपुर के महाराजा ने शिव जी का मन्दिर का कब्र बनाने के लिये एक मुस्लिम राजा को दे दिया???? ये बात कुछ हज़म नही हुई.....और ये हाज़मोला खाने के बाद भी हज़म नही होगी...!! "इन सवालों का जवाब कौन देगा?????" शिलालेख ताजमहल के बाहर रखा है तो वो मान्य नही है....इस लिहाज़ से ओके साहब ने ताजमहल के बाहर रखे जितने शिलालेखों का ज़िक्र किया है वो भी मान्य नही हुऐ.... जिस चिट्ठी का ज़िक्र ओके साहब कर रहे है तो आपकी जानकारी के लिये बता दुं कि January 22, 1666 को शाहजंहा जी इस दुनिया से निकल लिये थे और 1658 में वो बीमार पड गये थे और उसके बाद से वो अपने बेटे की कैद में थे......तो जनाब ये बताये जो शख्स कैद में उसे उसका बेटा चिट्ठी क्यौं लिखेगा और वो भी उस इमारत की मरम्मत के लिये जिस से उसे जलन थी...... 21 की बात जब छुपी हुई है तो उसका उल्लेख क्यौं किया गया?? 22 में ओके साहब अपने क्रमांक 18 को झुठला रहे है....पहले कह रहे है कि जयसिंह ने मानसिंह का महल दिया......अब कह रहे है की जयसिंह तेजोमहल पर शाहजहां के कब्ज़े से गुस्से में थे......... "अनुवाद करते वक्त दिमाग कहां रख कर आये थे????? ये कमी तो एक बच्चा भी पकड लेता...खैर...." 23 और 24 पिछ्ली बात की वजह से बेमानी हो गये..  काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif19 December, 2009 22:41 ( क्रम संख्‍या 25 से 29 तक)... 25 में ओके साहब एक नया नाम पेश कर रहे है "ताज-ए-मकान" और उसमें विदेशी लोग आते थे उसके पास दफ़नाया था......लेकिन शाहजहां ने तो कथित "ताज-ए-मकान" में दफ़नाया था... 26 में ओके साहब ने किसी अंग्रेज अभ्यागत पीटर मुंडी का ज़िक्र किया है जिसने सन् 1632 में लिखा था लेकिन उन्होने उस किताब का नाम नहीं लिखा जिसमें उस अंग्रेज़ ने लिखा था और जिसमें से उन्होने पढा था... 27 और 28 भी बेमानी है क्यौंकि उनका कोई सबुत नही है.....29 के बारे में थोडी रिसर्च करने के बाद ही कुछ कहुंगा....  काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif19 December, 2009 23:12 (क्रम सख्यां 30... जिस शिलालेख का ज़िक्र कर रहे है...उसको लेकर मेरे दिमाग में एक सवाल आ रहा है और शायद इस रिसर्च को पढने वाले हर इन्सान के दिमाग में आयेगा कि "जब शिव जी उस शिव मन्दिर में हमेशा के लिये विराजमान हो गये थे और उन्होने वहां से ना जाने का फ़ैसला किया था तो शाहजंहा ने शिव मन्दिर को तोड कैसे लिया???" कुछ सवाल और है ओके साहब की रिसर्च के बारे में... पुरा मन्दिर तोडने के बजाय शाहजंहा ने हर चीज़ को खण्डित क्यौं किया???? उसने शिलालेख को उखाड के फ़ेंक दिया उसको तोडने के बजाय??? आगे ऐसे सवाल बीच-बीच में करता रहुंगा तो ज़रा जवाब सोच के रख लीजिये..... No. 31= ताजमहल 1654 में पुरा हो गया था और जिन साहब का ज़िक्र आप कर रहे है उन्होने 1794 में ताजमहल में प्रवेश किया था पुरे 140 साल बाद....जिस जगह का ज़िक्र ओके साहब कर रहे है जहां टिकट मिलते है ये सब आज़ादी के बाद भारत सरकार द्वारा बनाया गया है... ताजमहल के बाहर से जो मस्जिद में जाने का रास्ता है वो भी बाद में बनाया गया है.....ताजमहल के मुख्य द्वार तक का हिस्सा पहले का बना हुआ है बाकी बाहर का गलियारा, लाकर रुम, टिकट खिडकी सब बाद में बनाया गया था....आज़ादी के बाद.... NO. 32, 33= कुरआन की आयतों को जिन पत्थरों से लिखा गया है ज़रा बतायेंगे की कैसे उन्हे देखने से पता लगेगा कि वो (कथित) पुराने शिव मन्दिर(?) के है??? पत्थर की उम्र तो बगैर जांच किये नही पता लग सकती है और अब तो आप वो जांच भी नही कर सकते हो क्यौंकि पता नही कितनी बार उन आयतों की मरम्मत हो चुकी है आज़ादी के बाद से....हर 1-2 महीनों में कहीं ना कहीं से कोई पत्थर गिर जाता है.... किस अमेरिकन प्रयोगशाला में जांच की गयी थी?? जांचकर्ता कौन-कौन थे??? उनके पास वो टुकडां कहां से आया?? उन्होने इस विषय पर चुप्पी क्यौं साधे रखी?? और चुप्पी तोडी तो वो भी पी.एन.ओके. साहब के कान में....  काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif19 December, 2009 23:21 बहुत रात हो गयी है....बाकी जवाब कल शाम को देंगे.....दरअसल मेरा सुबह मैच है और मुझे सुबह नमाज़ के लिये भी उठना है..... और महाशक्ति जी एक सलाह है आगे से इस तरह की कोई रिसर्च या लेख लाये तो बराय मेहरबानी टुकडों में लिखा किजिये.....लिखने वाले को आसानी, पढने वाले को आसानी और जवाब देने वाले को आसानी....  अवधिया चाचा20 December, 2009 00:05 बेटा हम बहुत जल्‍द अवध जाना चाहते हैं, इस लिए हमें काशिफ भाई के जवाब के बीच में आना पडा अब बस एक इच्‍छा है कि जाने से पहले अपनी 3 बातों पर तुम्‍हारा जवाब पढ लूं, फिर अवध जाऊँ आपकी दी निम्न जानकारी पर अब किया कह्ते हो चूँकि महिला का नाम मुमताज़ था जो कि ज़ अक्षर मे समाप्त होता है न कि ज में (अंग्रेजी का Z न कि J), भवन का नाम में भी ताज के स्थान पर ताज़ होना चाहिये था (अर्थात् यदि अंग्रेजी में लिखें तो Taj के स्थान पर Taz होना था)। जवाब दो और दो चार जैसा आसान Tajuddin से ताज शाहजहाँ का असल नाम ताजुद्दीन खिताब शाहजहाँ मुमताज महल से महल, इनका नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था खिताब मुमताज महल ..................... मैं इस लेख पर 1% विश्‍वास करने को तैयार हूं अगर कहीं 'ताज-ए-महल' शब्‍द को इस पोस्‍ट में दिखाओ, क्‍यूंकि आपने इसका शब्‍द को कई बार दोहराया है तो दूसरे लोग 50% विश्‍वास कर सकते हैं, सोच लो, फारसी का एक नियम जो उर्दू में इस्‍तेमाल होता दो शब्‍दों को जोडने के लिए 'ए' का प्रयोग होता है जिसका अर्थ 'का,के,की' क्‍या जाता है और अनुवाद में उलटा पढना होता है जैसे दीवान-ए-इकबाल = इकबाल का दीवान, इस तरह यह शब्‍द कहीं इस्‍तेमाल ही नहीं होसकता क्‍यूंकि इसका अर्थ होता है महल का ताज, चैलेंज है दिखाओ .................................. हर देश में महल के नाम से पुकारी जाने वाली इमारतें मिलती हैं जिस जगह बादशाह रहता था अर्थात बादशाह के घर को महल कहा जाता था, कहानियों में परीयाँ जहाँ रहती थी वह परियों का महल सुनते आए, जैसे भवन शब्‍द है तो यूँ कहा जाए कि किसी भी हिन्‍दुस्‍तान के सूबे में भवन नाम की इमारत नहीं मिलती बचकानी बात होगी, नहीं मानते तो जिस देश में जैसे ईरान, इराक, अफगानिस्‍तान से मिसाले पेश कर दी जाऐंगी सचित्र ----------------------------------- अवधिया चाचा जो कभी अवध न गया  Mithilesh dubey20 December, 2009 10:46 क्या बात है प्रमेन्द्र भाई बस इतना समझिये की छा गये आप , लाजवाब वे बेहद उम्दा लेख रहा आपका । और जरा प्रवीण शाह जी से बच के रहियेगा , ये तो बस उसी पर विश्वास करते है जिन्हे वे खूद प्रदिपादीत करते हैं , इससे पहले भी मैंने इनको कहते हुआ सुना कि इतिहास हो या धर्म ग्रन्थ इन सबपर विश्वास नहीं किया जा सकता , अब देखते हैं शायद प्रवीण भाई के पास खुद के इतिहास व वेद हों ।  shubhi20 December, 2009 12:42 इतनी बेवकूफी भरी रिसर्च में ओक साहब ने अपना समय खराब किया, भोले बाबा बिल्कुल नाराज हो गये होंगे। साहब यह हिंदू-मुस्लिम संस्कृति की सबसे शानदार इबारत है इसे हिंदू या मुस्लिम नजरिये से देखना इस संस्कृति का अपमान करने जैसा है और इसके विपक्ष में ऐसे उलजूलूल दलीलें तो और भी बुरी साबित होती हैं कोई गंभीर दलील हो तो मानें भी।  प्रवीण शाह20 December, 2009 13:15 . . . @ मिथलेश दुबे जी, नमस्कार, दोबारा आपको सक्रिय देखना अच्छा लगा... भारत और रूस के परमाणु संयंत्रों में नाभीकीय विकिरण से बचने के लिये गाय का गोबर लीपा जाता है...यही कहा था न आपनर एक बार ? फिर कह रहा हूँ कि संदर्भ सहित विश्वस्त प्रमाण दीजिये... फिर आपसे आगे बात होगी। Anonymous20 December, 2009 13:49 प्रवीण को अपनी बुद्धि पर गोबर लगवाना चाहिये, वो कुछ ज्‍यादा ही नष्‍ट हो रही है।  अवधिया चाचा20 December, 2009 13:51 बेटा हम बहुत जल्‍द अवध जाना चाहते हैं, इस लिए हमें काशिफ भाई और प्रवीण शाह के जवाब के बीच में आना पडा अब बस एक इच्‍छा है कि जाने से पहले अपनी 3 बातों पर तुम्‍हारा जवाब पढ लूं, फिर अवध जाऊँ आपकी दी निम्न जानकारी पर अब किया कह्ते हो चूँकि महिला का नाम मुमताज़ था जो कि ज़ अक्षर मे समाप्त होता है न कि ज में (अंग्रेजी का Z न कि J), भवन का नाम में भी ताज के स्थान पर ताज़ होना चाहिये था (अर्थात् यदि अंग्रेजी में लिखें तो Taj के स्थान पर Taz होना था)। जवाब दो और दो चार जैसा आसान Tajuddin से ताज शाहजहाँ का असल नाम ताजुद्दीन खिताब शाहजहाँ मुमताज महल से महल, इनका नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था खिताब मुमताज महल ..................... मैं इस लेख पर 1% विश्‍वास करने को तैयार हूं अगर कहीं 'ताज-ए-महल' शब्‍द को इस पोस्‍ट में दिखाओ, क्‍यूंकि आपने इसका शब्‍द को कई बार दोहराया है तो दूसरे लोग 50% विश्‍वास कर सकते हैं, सोच लो, फारसी का एक नियम जो उर्दू में इस्‍तेमाल होता दो शब्‍दों को जोडने के लिए 'ए' का प्रयोग होता है जिसका अर्थ 'का,के,की' क्‍या जाता है और अनुवाद में उलटा पढना होता है जैसे दीवान-ए-इकबाल = इकबाल का दीवान, इस तरह यह शब्‍द कहीं इस्‍तेमाल ही नहीं होसकता क्‍यूंकि इसका अर्थ होता है महल का ताज, चैलेंज है दिखाओ .................................. हर देश में महल के नाम से पुकारी जाने वाली इमारतें मिलती हैं जिस जगह बादशाह रहता था अर्थात बादशाह के घर को महल कहा जाता था, कहानियों में परीयाँ जहाँ रहती थी वह परियों का महल सुनते आए, जैसे भवन शब्‍द है तो यूँ कहा जाए कि किसी भी हिन्‍दुस्‍तान के सूबे में भवन नाम की इमारत नहीं मिलती बचकानी बात होगी, नहीं मानते तो जिस देश में जैसे ईरान, इराक, अफगानिस्‍तान से मिसाले पेश कर दी जाऐंगी सचित्र ----------------------------------- अवधिया चाचा जो कभी अवध न गया Anonymous22 April, 2016 00:04 Are shiv mandir h bas Anonymous29 July, 2016 20:54 तो आप भी सबूत दीजिये की ये ताज महल शाहजहाँ ने बनवाया हम भी साबित करेंगे के ये शिव मंदिर है । आओ खुली चर्चा करेंगे । शाहजहाँ को इतना प्यार होता तो ताज महल बुरहानपुर में बनवाते । ओ मुमताझ बुरहानपुर में मरी उसको वही दफनाया और 6 महीने के बाद और बाहर निकाल कर 600 मिल दूर आगरा क्यों ले गया । बुरहानपुर में आज भी उसकी कबर है । या तो ये कबर झूठ है या तो ओ ताज के अन्दर की । साबित करने के लिए दोनों की खुदवाई करनी होगी । सच आखिर सच होता है । कितने दिन झूठ का सहारा लोगे एक न एक दिन पर्दापाश होगा Anonymous20 December, 2009 13:56 डियर चच्‍चा.... मै एक दिन एक दुकान पर बैठा था, दुकान वाले के पर एक मौलाना समान लेने आये, नमाज़ पढ़ कर आये थे, नमाज की विशेषता बता रहे थे- नमाज़ पढ़ने से जन्‍नत मिलती है, जन्नत में हूरे मिलती है, इनसे सुन्‍दर दुनिया में कुछ नही होता। यह सुन कर दुकान वाले ने सिर खुजलाते हुये पूछा - ''चच्‍चा ई बताओ तुमहू नमाज पढत हौ, चच्‍चीऔ नमाज पढत है, तूमका तो हूर मिलिहै, चच्‍ची का का मिली ? ये बात सुन कर चच्‍चा लाहौल बिला कुबत कह करते हुये वहाँ से चले गये। Anonymous24 December, 2009 11:42 @ काशिफ़ आरिफ़ u r grt. u need not to prove anything. that the differantate between u & p n oak & 4 u r info p n oak had challenged but no one can accepted it if u want to prove it then give proof of bakhar or else so u cannot say उन्होने कहीं भी सबुतों को पेश नही किया है सिर्फ़ सम्भावनायें दर्शायी है @ pravn shah कहाँ पर और कितने विषय विशेषज्ञ इन बातों से सहमत हुऐ हैं आज तक सहमत कोई नही हुआ लेकिन उनका कहना कोई भी सबूतोसे गलत साबिट नही कर सके जब की उनके विरोधी ओन् के पास उनका कहना गलत सबिट करनेक पुरा चान्स था उनसे कोई सहमत नही हुआ लेकिन कोई उन्को गलत सबिट नही कर सका आप एक बार उनका बुक पधकार देखो Anonymous24 December, 2009 11:57 @ kashif कुछ सवाल और है ओके साहब की रिसर्च के बारे में... पुरा मन्दिर तोडने के बजाय शाहजंहा ने हर चीज़ को खण्डित क्यौं किया???? उसने शिलालेख को उखाड के फ़ेंक दिया उसको तोडने के बजाय??? 1)उसे वहां रेहेना था ना की पूजा पाठ करना था 2)इस सवाल का जवाब तो सिर्फ वही दे सकता है के उसने क्यूं उखादा उस से यह सबिट नाही होता की p n oak गलत है  Unknown29 December, 2016 07:06 Behas ki bajaye...koi locked rooms ko khulwao...  love25 December, 2009 18:46 adhiya chahca to aise baat kar rahe hai jaise ye shuru se hi musalle the ya fir ye hi muhammad ki sntane hain are awadhiya chhacha tere purvaj bhi pahle hindu hi the , jo baad me mughloon ka atyachaar sahte hue musalman ban gaye . YADI MUSALMANO KE LIYE AAJ IS DESH ME RESERVATION NAHI HOTA TO AAJ SAARE KE SAARE MUSALMAN DOOBARA HINDU BAN JAATE ,, SAMAJH AAYE PUTAAR . SIRF RESERVATION KE LIYE APNE KO MUSALMAN JAISE KUTEE BANA KAR RAKAHA HUA HAI SAAALE KATUEEEEEEEEEE  jitender05 January, 2010 22:30 Bhai sahb kya bhriya likha apne.Pr bewkufon ko jitne mrzi trk do ve nhin smajh nskte kyonki inko dimag nhi hota. jaise avadhiya chacha. apko bta de ki ye jo bhi muslim or cross wale bharat main rehte hain sb ke sb coverted parents ke bche hain pr inhen kaise smjhayen. Anonymous06 January, 2010 03:20 aji chhodo bekar ki baaten...ye chache-wache or praveen-kurveen,,kuchh karne ko nahi he to ese hi time pass kar rahe he...fact will always remain the fact...musalman jo apne baap ko mar kar gaddi pe bethte the...wo apni biwi se jo ki panch sau ekvi ho,,usse kese pyar karenge?????or baki sab jo unki peravi karte he,,,saale apni behno ko to chhodte nahi dusre ke madir-gharon ko kese chhod denge....khane me bakre halaal karke khate he..pavitrataa kya hoti he kese janenge SUBHASH KUMAR SUMAN12 January, 2010 15:33 @avadhiya chacha ye log kyun ul-julul, bina sir pair ki baten kiya karte hain. "ताज-ए-महल" ka jikr yahan par unhone apne man se nahi kiya hai,iska jikr shahjahan aur aurangjeb ke chiththiyon me huwa hai aur iska jikr wahi IDIOT log de saktehain jo filhaal apne-apne kabron me dafan hokar soya pada hai. if u r more interested to know the reality then go there and ask him....  sunil malhotra29 December, 2016 07:58 Usliye chacha aap avadh na h jao aap shahjahan se puchhne jao...ganga ke raaste😜😜😜  sunil malhotra29 December, 2016 08:01 Isliye chacha aap avadh na hi jao aap shahjahan se puchhne jao...ganga ke raaste😜😜😜 SUBHASH KUMAR SUMAN12 January, 2010 15:36 ye jo marxwadi hote hain na bilkul kutte ki dum, sale ko zindagi bhar mitti me gaad do fir bhio tedhe hi rahenge. in kutton ne itihaas ko ganda karke rakha hai. chahe aap indian history pad rahe ho ya fir greece, rome, mesopotamia ya kahin bhi inke ul-julul trkon ko padhkar inka khun peene ka man karta hai. in kutton se nivedan bhi nahi kiy ja sakta, sale samajhte hi nahi hain.. prashant12 January, 2010 16:38 मैं भी हाजिर हो ही गया इस पंचायत में । ऐसी की तैसी देश के इतिहासकारों की जिन्होने सारे देश की लुटिया डुबो रखी है । मैं इस लेख से पूरी तरह से सहमत हूं .. अरे जब हमारे देश में नेहरू जैसा आदमी प्रधानमंत्री बनकर कहता है कि तिब्त चीन ले जाता है तो ले जाने दो वैसे भी उस बर्फिले रेगिस्तान का बोझ हम नही उठा सकते ... फिर पुराने कथाकारों का क्या कहना .. मुगलों से छुटे तो अंग्रेंजों को पाये अंग्रेजों से छुटे तो गाँधीयों को पाये .. हमारा कुछ नही हो सकता .. हे शिव इन झंडुओं को कुछ अकल दो ताकि देश की संस्कृति और सभ्यता के लिये खुद लडें ना कि किसी और के कथा कहानी का इंतजार करें ।  nitin tyagi14 January, 2010 15:53 जला दो ये इतिहास झूठे तुम्हारे यहाँ कण -२ में सच है लिखा रे |  Sumit29 January, 2010 13:43 @काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif Bhai tum bhi Is topic ke upper reason ki Ek Post bana ke blogger mein post kar do to jyada accha hoga... Well I think that Taj is made by Mughal Ruler Shahjahan. And it's the symbol of Love. but this 100 post took me to confusion. Still I beleive that Taj is made by Shahjahan.  suraj23 February, 2010 14:52 it jabardust. laga ki kabad diya tajmahal ka itihas  Dattanand10 March, 2010 14:56 Jo kuch bhi ho........... lekin yeh padhnese muje laga - ho bhi sakta hai aur nahi bhi ....... kya pata ......... lekin vihar karne par majboor kar diya hai aisa muje lagta hai. Apka yeh blog maine pahli bar padha hai muje lagta hai ki Tojomahel- Ek Shiv Mandir ya Tajmahel per reserch karna chahiye. Anonymous12 March, 2010 16:25 Etna Kuchh padhane ke bad hamane bhi socha ki jyada nahi to Aarif saheb ki ek-do bato ka jabab to de hi diya jaye... 1.Aarif saheb ne yesawal uthaya tha ki hindu dharam me 108 subh kaise hota hai to unhe ye batate chale ki,hinduo ke mala me 108 manke hote hain aur mantro ke jap ke samay 108 ki sankhya hi ya uske gunak ya bhajya hi subh mane jate hai.. 2.Mahal to sanskrit word nahi hai par Mahalya sanskrit hai jiska hindi mahalay yani vishal bhaval hota hai..Oak saheb ne bhi ese TejoMahalya hi kaha hai..Aap batao pharasi me mahal ka jikr hai?  SONA20 March, 2010 16:07 kuch bhi ho tark bhi badiya the or unki kaat bhi  sam,31 March, 2010 10:46 ye jo kashif arif he inse puchna chahuga k tajmal makbara he to usme 8 kono vala kua kha se aya, or mumtaj k marne ki date kyo nhi he,  umesh16 April, 2010 16:17 Mia kashif arif ,tum sirf baato to dhuma rahe ho. India me muslim ne sirf islam tu jabbardast phailaya hai.mandir tu covert kar apna naam de diya.taj bhi wahi hai. sirf Indian government reaserch karani chahiya ,what the truth Anonymous05 May, 2010 17:17 hum aak tak garib desh kyon hai kyonki hum kisi kay awishkar ko samman nahi den jantay. sirf ek dharmandh admi ki khoj say itihash nahi badal sakta. aaj bhi prof. oak jaisay tuchay logo ki wazh say hmay desh kay scientists ko videsh jakar hi samman mil pata hai. nahi ye log khangy y to mainay banaya tha please kisi doctor say ilaz karwayen. Anonymous19 May, 2010 03:47 एक बच्चा हिंदू हि पैदा होता है! मुसलमान तो उसे बनाया जाता है  love19 May, 2010 13:49 heheheheh jeeehan sach kaha aaapne musalman to ye baaad me .................katwa kar bante hain artificial insaaan manoj23 May, 2010 00:10 Abhi tak jo bhi sach suna tha abb thoda sa doubtful lag raha hai Taj ko kisne banwaya tha iss baat ki poori research honi hi chahiye jisse ki sahi aur galat ka pata lag sake aur jo bhi rahasya hain usse saamne laana chahiye. manoj23 May, 2010 00:13 Agar Taj ko Hinduon ne banaya hai toh iska shreya unko zaroor milna chahiya jisse hum unki kala ko samman ka darza de saken. Anonymous28 May, 2010 20:48 Hello. Often the Internet can see links like [url=http://www.whitehutchinson.com/aboutus/]Buy cialis without prescription[/url] or [url=http://www.rc.umd.edu/bibliographies/]Buy cialis without prescription[/url]. Is it safe to buy in pharmacies such goods? Anonymous31 May, 2010 22:17 एक बच्चा हिंदू हि पैदा होता है! मुसलमान तो उसे बनाया जाता है साले कटियों.....अवधिया चाचा कि मा कि आँख Anonymous14 June, 2010 19:19 bhai ye ham kya kar rahe hai ye to sab jante hai h ki jo bhi muslim bhai hindustan,pakistan , bangladesh,aur yha tak ki afganishtan,sudiarbia tak me h sab me se 95% se bhi jyada ke purvaj hindu hi the ,aue ha ye bat m yu hi nahi kha raha hu iska jikar agar aapko pata ho ya nahi m bata deta hu,hindustan me musalman bhaiyo ka jo'darul-ulam-devband ' namak ek sabse bada sansthan hai uski molviyo ki jo ek sanstha hai vo bhi is bat ko manti hai,par mere khne ka galat matlab mat nikalna phle puri trha se samjho m kya khna chahta hu ,jab islam dharam ki sthapna hui thi tab islam koi dharam nahi tha,jis parkar aaj ke yug me ham alag alag samparday dekhte hai,usi parkar hajrat mohamad pagambar sahab ji ne ek nye panth ki suruwat ki thi eski ek vajh ye thi ki us samy bhut adhik bura mahol ho gya tha is sabse bachne ke liye hi mohamad ji ne islam naam ka samparday banaya tha unka manna tha ki isme sab achche log honge aur hue bhi par jesa hmesa hota hua aaya hai esme bure log bhi aaye or unhone islam ka matlab hi kuch our kar diya ,mohamad jab karbala naam ke sthan pe the to pata h unhone kya kha tha unhone kha tha ki islam agar khi sabse jyada surakshit h to vo h keval hindosta ,hindustan nahi kyu ki us samay to hindustan tha hi nhi,aur h afganistan ki rajdhani kandhar ke bare me to aap jante hi honge jo mahabharat ke samay ek mukhy kendra tha , me aaj bhi puratatav vibhag ko 3000-se 10.000 hajar saal phle ke avses milte h or vo sab k sab khoj karne vale musalman hi h ,par ve bhi is bat ko mante h ki ye sab mahabharat ki samay ke aur use pahle ke hi hai ,islam to bhut bad ki bat hai agar aapko koi aur jankari islam ke bare me chahia to m is sid se juda rahuga par m yh nahi chata ki ham ek taj mahal ko lekar aapas ka bhai chara khatam kar le ,ye to sab jante hai ki sahajha ne aur dusre muglo ne apni murkhta ke karan hi hiduo ke mandiro ki jgha masjidho ka nirman karaya hi iski bangi aapko agar dakhni ho to aap delhi ke kutub-minar masjid me dekh sakte h jha aaj bhi masjid ke gombado par hindu devi devto ki tasvire(nakasi) chitrit h par vo yh nahi jante the ki upar vala ek h bas raste alag h, upar se ham sab ek jase aate hai aur niche aakr bat jate h, vikas goel14 June, 2010 19:27 bhai ye ham kya kar rahe hai ye to sab jante hai h ki jo bhi muslim bhai hindustan,pakistan , bangladesh,aur yha tak ki afganishtan,sudiarbia tak me h sab me se 95% se bhi jyada ke purvaj hindu hi the ,aue ha ye bat m yu hi nahi kha raha hu iska jikar agar aapko pata ho ya nahi m bata deta hu,hindustan me musalman bhaiyo ka jo'darul-ulam-devband ' namak ek sabse bada sansthan hai uski molviyo ki jo ek sanstha hai vo bhi is bat ko manti hai,par mere khne ka galat matlab mat nikalna phle puri trha se samjho m kya khna chahta hu ,jab islam dharam ki sthapna hui thi tab islam koi dharam nahi tha,jis parkar aaj ke yug me ham alag alag samparday dekhte hai,usi parkar hajrat mohamad pagambar sahab ji ne ek nye panth ki suruwat ki thi eski ek vajh ye thi ki us samy bhut adhik bura mahol ho gya tha is sabse bachne ke liye hi mohamad ji ne islam naam ka samparday banaya tha unka manna tha ki isme sab achche log honge aur hue bhi par jesa hmesa hota hua aaya hai esme bure log bhi aaye or unhone islam ka matlab hi kuch our kar diya ,mohamad jab karbala naam ke sthan pe the to pata h unhone kya kha tha unhone kha tha ki islam agar khi sabse jyada surakshit h to vo h keval hindosta ,hindustan nahi kyu ki us samay to hindustan tha hi nhi,aur h afganistan ki rajdhani kandhar ke bare me to aap jante hi honge jo mahabharat ke samay ek mukhy kendra tha , me aaj bhi puratatav vibhag ko 3000-se 10.000 hajar saal phle ke avses milte h or vo sab k sab khoj karne vale musalman hi h ,par ve bhi is bat ko mante h ki ye sab mahabharat ki samay ke aur use pahle ke hi hai ,islam to bhut bad ki bat hai agar aapko koi aur jankari islam ke bare me chahia to m is sid se juda rahuga par m yh nahi chata ki ham ek taj mahal ko lekar aapas ka bhai chara khatam kar le ,ye to sab jante hai ki sahajha ne aur dusre muglo ne apni murkhta ke karan hi hiduo ke mandiro ki jgha masjidho ka nirman karaya hi iski bangi aapko agar dakhni ho to aap delhi ke kutub-minar masjid me dekh sakte h jha aaj bhi masjid ke gombado par hindu devi devto ki tasvire(nakasi) chitrit h par vo yh nahi jante the ki upar vala ek h bas raste alag h, upar se ham sab ek jase aate hai aur niche aakr bat jate h, pawan khatri14 June, 2010 22:05 http://www.flex.com/~jai/satyamevajayate/tejo.html Anonymous22 June, 2010 14:37 Tajmahal ke baare me padhkar mai really confused ho gaya hu. pata nahi sachchayi kya hai. mujhe to P.N.Oak sahab ki bhi baat sahi lagti hai aur kasif bhai ki bhi.  LIFE ............. WHO KNOWS04 July, 2010 16:12 Shah Jahan Ne bahut kuch banwaya aur demolish karaya. aur ye baat jhuth nahi hai ki Muslim Shashak yaha mandiron ko hi tor ker apna sab kuch banaya aur apna pet bhara aur ye aaj ke musalman jo khud ko musalman kahna bahut accha samajhte hain zara khud mein jhank ker dekh le yaa apni 4-5 pustein piche jaakar apne per dada ke per dada kaa naam pata karein koi hindu hi nikal jayega unka baap. Try to think of your own identity You all Muslims you have nothing to cheer about. Anonymous07 July, 2010 16:38 it,s very good story  Kiran More11 July, 2010 09:38 भाईओ मुझे लगता है कि ताजमहल को शिवमंदिर कहने के लिये हमे किसीके प्रमाणपत्र कि जरुरत नही है. हम ऐ सोच कर आगे चले कि वोह शिवमंदिर हि है. वैसे भी बहुत देर हो चुकी है... समझने वाले को इशारा काफी है... Anonymous15 July, 2010 19:05 taj mahal hinduoan ka pavitra shiv mandir hi hai aur isse koi juthla nahin sakta kyunki oak ji ne jo bhi likha use jhuthlaya ya ignor kiya nahin ja sakta aur in chacha vacha arif varif jo bhi hai ullu ke pathe hai kyunki inhein pata hai inka kuch nahin hone wala issiliye taj ko jo ki hindu dharm ke logon ka pavitra sthal hai use jabardasti main apne kisi auratbaaz shahenshah ka naam usse jod kar faltu ki importance or attention lena chah rahien hai Anonymous15 July, 2010 19:38 saalo taj mahal shah jahan ne banavaya tha to aise bolte ho jaise tumhare baap ne banvaya ho khana tak to ulte tave pe banvate ho likhte bhi ulta ho toh ullu ki dumaon taj mahal banvaoge aukat hai tumhari taj mahal banvane ki paida bhi ulte hi hue the kya itna bhi bata do aji sawal dekho oak ji mujhe ye bata de ki kuye kahan se aye chitthiyan kahan hai aur to aur scientistoan se milvao scietistaon se milenge apne baap se mile ho kabhi. oak saab ne bilkul sahi kaha hai aur agar unke man main ye baatein uthi hai to ye zaruri hai ki sarkaar unki teh tak tak jaye aur agar ye baat sach nikalti hai ki taj hinduon ka mandir hai to kisike baap main himmat ho to phir dobara ye kahe ki isse shahenshah ne banvaya haiphir dekho sarkar to baad main bajayegi pehle janta chaba jayegi tumhein. woh to shukra samjho ki kisi ne to himmat dikhai ki taj 1 hindu shiv mandir hai varna log hamesha isi galatfehmi main rahte ki ye kisi kanjus raja ne apni biwi ke liye taj mahal banvaya tha ab hum satmola kya hingoli pachnol bhi khalien tab bhi ye baat hajam nahi hogi ki koi kanjus taj banva de wo bhi uske liye jo koi aisi khaas bhi nahin thi aye bade taj banwainge saale hutt &$@^$#@#":#@@@$#%! saale question mark nahin to bhutni de Anonymous15 July, 2010 19:52 aur kuch aise chutiya log bhi hain yahaan jo baar baar likh rahe hain ki koi baat nahin bhai chara mat khatm karo tum jaise chutiya logo ki wajah se hi hamesha se aisa hi hota aaya hai aur agar tumne soch nahin badli na to aise hi hamara haq chhin chhin ke khate rahenge ye saale aur tum saalo aise he chutiyaon ki tarah dekhte aur likhte rehna jaise ki phattu ab likh rahe ho ki kuch nahi hota na yaar chhodo na yaar bewakuf nonsense Anonymous15 July, 2010 19:55 ताज नही तेजो महल, जय भोले बाबा की Anonymous15 July, 2010 20:08 are yaar taj kehna bhi zarurihai nahin ye saale samjhenge ki taj baap ka hai Anonymous15 July, 2010 20:13 aur kya hua us chutiye arif varif ka saala match khelne gaya hai ya marne gaya hai jo abhi tak na aaya saale ab baat kar humse oak ji toh chale gaye hamara bhala karke ab tujhe lena hai bas aade hath aa to sahi 1 baar tujhe bataaeinge aag kisne lagayi hai jai bhole naath Anonymous15 July, 2010 20:19 saalon hame na chhoda na sahi saalon hamare bhole naath pe bhi kabja kach kha jayenge jai bhole naath  vivek20 July, 2010 22:12 jai bhole nath ki.  jjradhe24 July, 2010 03:05 Listen you all guys i am 100% agreed with mahashati & Prof Oak Aur jaha tak ye log oppose karte he to koi unhe samjao,k vo bhi hamare sath ho jaye aur sarkar se kahe in rahsyo se parda uthane k liye fir dudh ka dhudh aur pani ka pani ho jayega sach jo bhi ho samne aa jayega aur use hame accept karna padega koi kaho unse k kya vo hamare sath he? is sachchai ko janne k liye yaha bat hindu ya mualman sanskruti ki nahi he,sach janne ki zarurat he, aur uske liye sabko ek hokar aavaz uthani chahiye aisa me manta hu aur jinme sach janne ki takat aur aukat he vo zarur hamara sath denge to fir chalo dilli aur sarkar ko bolo sach se parda uthane k lie,tejomahalay ya tajmahal k bandh darvaze kholne k liye he himmat ye karne ki jo nahi manta k ye hindu mandir shiv ji ka pratik he i m giving open challege now tell me who dares to do it pawan khatri12 August, 2010 07:53 me toh soch rha hu iss sach ka prachar karne k liye is article ko india tv ect..news channels ko email kar du... wht du yu say? Anonymous19 August, 2010 20:15 NAMASKAR, Aaj ka Taj Mahal pehele Tejo Mahalaya tha yeh baat sau pratisat satya hai,isse har ek hindustani apne dil se maante hain. yeh baat khud ABADHIYA CHA CHA,KASHIF ARIF,PRAVEEN SAHA jaise nahin maannewale bhi dilse maante hain lekin samne kehenekeliye daarte hain kuinke char sau saal se jo such ko unke purbajone chhupake jo nayya itihas likhe thee kahin unka pool na khuljaye isliye iss khoj ki burai karte hain maante nahin lekin bhai saachko jitna chupaoge woh samne aahi jayega jaise Prof PURUSHOTTAMJI ne sare saach ka ujagar kardiya apni khoj main aur yeh sub unko pagal kehete hain,saach hai woh pagal hi thee kuinke aaj ki zamane main woh paise ke pichhe na jake saach ki khoj kiya woh pagal nahin to kya hai.ye khoj karnese pehele woh isske anjam ke baremain hajar baar socha hoga woh jante thee ke iss khoj main bahat samay barbaad hoga aur paisa bhi kharcha hoga aur unka majak bhi udaya jayega phir bhi woh karke dikha diya.isske liye unko sau sau baar pranam paramatma unki atma ko shanti de. RAMA GOBIND Anonymous20 August, 2010 22:59 Kashif arif ko hajmaula khane ke baad bhi hajam nahin hota ke Jaipur ka maharaja ne sivji ka mandir ko mumtaz ka makbara banane ke liye ek muslim raja ko kaise dediya? Jub Shahajahan ke kabzee main Agra tha to Tejo Mahalaya bhi uske kabzee main tha to phir Jaipur ka maharaja mandir ko deneka sawal kahan ata hai.woh manganeka matlab Jaipur ka maharaja ko yeh jankari di ke tumhari mandir ko apni bibi ka makbara banaraha hun. Pura mandir todne ke bajay Shahajahan ke har chij ko khandit kuin kiya? Shahajahan achhi tarha jaanta tha ke Tejo Mahalaya jaise sundar shandar imarat woh kabhi khwab main bhi bana nahin sakta tha isliye pher badal karke Taj mahal kar diya. Usne shilalekha ko ukhadke phek diya todne ke bajay? Kya kahun aapse,aap ka jaisa dimag hota to yehi karta lekin saach ka ek kadi kho jata. Aur yesee sawal ka jawab bhi aap ko dena hai. Phir milte hain.  A.H.Quadri29 August, 2010 20:10 Mr.P.N.Ok ne Tajmahal ke Shilalekh, Jaipur ke Kapardwar record aur us time ke Itihaskaro ki kitabo ko janbujhkar nahi dekha hai. Aisa lagta hai ke Mr.Ok durbhavna(malafied itension)rakhte huve aisi bate likh rahe hai aur Bharat me sampardayikta fail rahe hai. Jo kam 1947 se pahle British sarkar karti thi,Hindu-Muslim main danga karati thi, wo kam Ajad Bharat me Mr.Ok.aur unke chele kar rahe hai. A.H.Quadri Lecturer(History)  satish shinghania07 September, 2010 10:20 हम कितना भी बोलें और तथ्य दें परंतु ये झंडू लोग मानने वाले नहीं हैं, जैसे अयोध्या और मथुरा के लिये नहीं मानते हैं, अगर इनका बस चले तो ये तो यह भी साबित करे दें कि पैगम्बर मोहम्मद हिन्दुस्तान में पैदा हुए थे और ये उनकी औलादें हैं, कभी ये मानने को तैयार नहीं होंगे कि ये सब हिन्दू से झंडू में कनवर्टी हैं, जैसे कि वो क्रास वाले नहीं मानते हैं, जैसे सब के सब सूलीवाले के सगे संबंधी हैं। और तो और हमारी भारत सरकार भी यह मान लेगी  Vineet24 September, 2010 08:39 hindustan me anyay sirrf hindu ke sath hota hai ur ye karane wali koe aur nahi kuch rajnitijya murkh hai ath esake liye hindu ko jagana hoga aur apane adhikar ko chhinana hoga  vandana25 September, 2010 01:27 apke mutabit bharat me her muslim imarat hindu mandir hi tha,muslims bhi hmare bhai hai inko bhi shanti se jine do.in sab bato se problems hi bedegi.bharat me shanti rehe logo ko ye nahi pasand hai shayed.  दिलीप कुमार पाण्डेय26 September, 2010 03:24 क्या बताऊं यार... सबकुछ जानता हूं.. ये साले अफीमची, शराबी और लुटेरे क्या जानें वास्तुकला क्या है लेकिन क्या करें यार लिखने से क्या होगा, हिंदू बड़ी आलसी कौम है इसको जगाना बैल से दूध निकालने की तरह है....  aasma30 September, 2010 11:44 This comment has been removed by the author.  aasma30 September, 2010 11:57 This comment has been removed by the author.  aasma30 September, 2010 11:59 आज आप से यही बात कहना चाहती हु की मुसलमानों ने आपके लिए क्या नहीं बनाया किले ताज महल लाल किला आज भारत 7 वे अजूबे में है हो मुसलमानों के कारण है और आपको एक बात बता देती हु की 60 साल राज करने ये मत समझना की तुम भारत के मालिक हो गए हो मुसलमानों ने 600 साल राज किया और बहुत सी ऐतियासिक चीजे बनवाई आप ये बताये की आज तक आपने देश के लिए किया है कहते है हमारा देश ये देश आज भी हमारा है और आगे भी हमारा ही रहेगा आने वाले कुछ सालो में ये जितने भी काफ़िर है उनको मिटा देंगे ये हमारा चलेंग है ताज महल को सिव मंदिर कहने वालो पहले क्या गांड मरवाने गये थे जब ताज बना था जब तो तुम्हारे सब राजा थे शिव जी आदि थे ये गांधी जी, जीना ने माँ चुदवाली जो देश के दो टुकड़े कर के चले गए आज जो तुम ताज को सिव मदिर को शिव मंदीर कह रहे हो तब बताते उस वक्त बात करते जब ताज बना था तब कहते की ताज नहीं शिव मंदीर है जब तुम्हारी गांड के दो टुकड़े करके कड़ाई में तल कर भुझ्या बनाके खाते तब पता चलता की वहा सिव मंदीर था या ताज महल तुम मानते हो की ताज को सिव मंदिर कर देंगे इन्पोसिब्ले ओके शहीदे वतन का नहीं कोई सानी वतन वालों पर उनकी है मेहरबानी वतन पर निछावर किया अपना सब कुछ लड़कपन का आलम, बुढ़ापा, जवानी  Hope Hope14 January, 2017 12:38 Aasma ji apni aukat me rehkar baat kariye nahin toh jis din Hindu jaag gaye na aur yeh dhamki kisko de rahi ho ki tum hasti mita dogi hamara yeh tumhari bhul hai itihaas gawah hai ki sadiyon se bharat hinduon ki nagri rahi hai are galati toh hamare unhi purwajon ki hai jinhone tum jaison chor looteron ko yahan panah di aur usika natiza hum aaj yahaan bhugat rahe hain are tum toh uss kutton se bhi gaye guzre nikle Jo apne maalik ki thali me khana khaa kar woh kutta bhi tumse jyada wafadar hota are tum toh woh kutte ho jisne jis thali me khai usi me ched kiya itihaas gawah hai ku tumlog jahan jahan gaye ho wahan sirf kattarpanthi , zihaad aur aatank hi failaya hai aur tum hame dhamki de rahi ho ki hamaare raajaon ne kya kiya tum bilkul sahi keh rahi ho hamare raajao ne aur purkhon ne apna paisa sirf apne mandiron aur bhawano ka nirmaan karne me hi udaya hai jise tum jaiso literon ne loota machai hai aur jagah jagah kabza kiya hai aur atank hi failaya hai………… aur suno tum jo yahaan bhi zihaadipana dikha rahi ho na zara had me rah kar bolna ki tum hamari hasti mita dogi dhyan rahe jis din Hindu jaag gaye aur tumhari tarah hi zihadipana dikhane lag gaye na uss din se tumlogon ki ulti ginti shuru ho jayegi…………… jai shree ram 🚩🌞🚩🌞🚩🌞🚩🌞🚩 jai shree krishn ki nagri ………… ..surya shankar pratap singh Anonymous01 October, 2010 14:18 tumhari ma ka choden aasma ,, teri gand k tukde karke teri usi taj mahal me chunwa dete hain ,,,,kaisa rhega ..... rakho apna taj ,,,sahjhan ke hawas ki nisani apne paas, per aasmaa ja teri gand me nafrat bhari hai na use apni gand ko apne bhai se marwa lo,, tumhare dharm me to bhai bahan ki chudai to chalti hi hai... A.H.Quadri02 October, 2010 20:04 Taj ke bare me likhe is lekh ko Internet se hata diya jana chahiye. ab is lekh par comment karne wale Sampradayik bate kar rahe hai. Ham pahle Indian hai aur bad me Hindu ya Musalman.Abrar Hassan Quadri,Lecturer,History.  Kamal15 October, 2010 21:40 भाई लोगो, अगर आप लोग Shri P N Oak की किताब पड़ना चाहते है तो इस लिंक से डाउनलोड कर सकते है: http://www.apnihindi.com/2010/09/blog-post_12.html इस किताब को पड़ने के बाद कुछ और बाते समझ में आ जाएँगी. मेरा आप सभी से अनुरोध है कि कृपया अपने कमेंट्स में सम्प्रदायक बातो का उल्लेख न करे. इन बातो से एक दुसरे के प्रति नफरत पैदा होती है. धन्यवाद.  shiv29 October, 2010 13:45 HAR CHIJ KA TARIKA HOTA HAI. "TARK SE SACCHAI SAMNE AATI HAI". AUR SACCHAI JANNE WALE SACCHAI KHOJE. TAJ EK AAINA HAI. *TUM SAB KE SAB GALTFAHMI ME HO. AGR SHIV JI KA MANDIR HAI TO SHIV JE SAMNE KYO NAHI AATE? *TUM SAB KE SAB HIMALY BHI CHALE JAO TO SHIV NAHI MILENGE. PRHLAD HIRDYAKASYP KE GHAR ME VISNU KO SAMNE LATA HAI. TO KYA TUM ITNE GIRE HO KI SHIV KO SAMNE NA LA SAKO? PAHLE YE PATA LAGAO KE SHIV DEKHATE KYO NAHI???????? AB YE NA KAHNA KI KHUBSURATI NAJRO ME HOTI HAI.SAMNE NAHI PAHLE SAB KE SAB APNE KAME DEKHO KE HINDU AUR MUSALMAAN BHAIYO SABSE PREM KARO ISKE SIWA KHUDA HO YA ISWAR KOI BHAASA NAHI JAANTE. Anonymous07 November, 2010 01:06 Are AASMA bi aap ek nihayat hi gandi soch ki wahyat mahila/ladki hai taj mahal hindu ne banwaya ya muslman ne yeh to door ki baat hai mujhe to sak hai ki aapko apne baap ke baare me bhi pata na hoga,aise comment karne se pehle ek baar iss baat par bhi gaur pharmaye mahutarma ki aaj bhi hindustan me hinduon ki tadad mullon se zyada hai...... baaki comment baad me Anonymous18 November, 2010 12:41 tajmahal is wonderfull place,dont tallk tajmahal is mandir ok' Anonymous19 November, 2010 14:11 dekho yaar hindu or musalman aapas me bhai hai,Ram or Allah dono hi ishwar ke hi roop hai,isliye aapas me mil kar raho,hame koi bhi aapas me nahi lada sakta,Sabko yahi samghna chahiy.  sonu.sonu2420 November, 2010 20:08 taj kisne banaya bad ki bat ...... ye hindu mandir hai ya nahi .... bad ki bat ....... me to ye kahta hu ki jab baba aadam or manu ek hi insan the or sab unhi ki olad hai to sab ke sab ek hi dharm ke bhai bhai huve na... matlab sanatan dharm ke sab hai or sab bhai bhai hai. Anonymous20 November, 2010 20:11 taj kisne banaya bad ki bat ...... ye hindu mandir hai ya nahi .... bad ki bat ....... me to ye kahta hu ki jab baba aadam or manu ek hi insan the or sab unhi ki olad hai to sab ke sab ek hi dharm ke bhai bhai huve na... matlab sanatan dharm ke sab hai or sab bhai bhai hai.  नवीन त्यागी23 November, 2010 20:48 तुम सो रहे हो नोजवानो देश बिकता है, तुम्हारी संस्कृति का है खुला परिवेश बिकता है। सिंहासनों के लोभियों के हाथ में पड़कर , तुम्हारे देश के इतिहास का अवशेष बिकता है । पिशाचों से बचालो देश को,अभिमान ये होगा, तुम्हारा राष्ट्र को अर्पित किया सम्मान ये होगा sk26 November, 2010 19:21 OK sir ne ye khoj badi study ke sath ki hai. Agar unke dwara di gayee jaankari ki BHARAT SARKAR dwara cheaking hoti hai, to…

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